The Hindu – DECEMBER 25 (Original Article Link 1, Orginal Article Link 2)
सरोगेसी क्या है, इसकी जरूरत क्यों है, ये समाज पर क्या प्रभाव डालता है और नए सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016 की क्या विशेषताएँ, लाभ और चिंताएँ है ?
हाल ही में नए सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016 को लोकसभा से पारित कर दिया गया है. इस विधेयक में कई महत्त्वपूर्ण प्रावधान हैं जिनमें से एक सबसे उल्लेखनीय प्रावधान यह है कि इसे एक परोपकारी (altruism) रूप दिया गया है और इसके व्यावसायिक (commercial) दुरूपयोग की संभावना को समाप्त करते हुए यह प्रावधान किया गया है कि सरोगेसी माता वही स्तरी होगी जो सरोगेसी चाहने वाले पुरुष की सगी-सम्बन्धी हो.
सरोगेसी
सरोगेसी अर्थात् किराए की कोख जहां एक पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु का गर्भाशय से बाहर आधुनिक तकनीकों द्वारा निषेचन करने के बाद भ्रूण को दूसरी महिला के गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है एवं वही महिला उस गर्भ को 9 महीने अपने गर्भ में पालती है और बच्चे के जन्म के बाद तय समझौते के तहत दंपति को बच्चा दे दिया जाता है. सरोगेसी की जरूरत इसलिए पड़ती है क्योंकि कुछ प्राकृतिक कारणों के कारण यदि कोई महिला गर्भ धरण करने में असक्षम है तो वह किसी दूसरी महिला का गर्भ अपने बच्चे के लिए प्रयोग कर सकती है. विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ यह संभव हुआ है और निःसंतान युग्मों को संतान प्राप्त करने में सहयोग किया है.
महिलाओं पर लगने वाले सामाजिक लांछन जैसे नि:संतानता के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराना और पहली पत्नी से विवाहोपरान्त कोई संतान ना होने के कारण दूसरा विवाह कर लेने जैसी कुछ रुढ़िवादी सामाजिक प्रताड़नाओं से बचने के लिए सरोगेसी एक रामबाण की तरह उजागर हुआ है और निःसंतान महिलाओं को स्वाभिमान से जीने, वात्सल्य-प्रेम और परिवार में महत्त्व देने के लिए योग्य बनाने में मददगार साबित हुई है. कभी-कभी किशोरावस्था में किसी कारणवश बच्चों की मृत्यु होने या बिना बच्चों के किसी महिला की होने वाली आकस्मिक मृत्यु पर सरंक्षित रखे हुए वीर्य और अंडाणु को मिलाकर संतान को जन्म दिये जाने के उदाहरण हम आम तौर पर अखबारों में पढ़ते ही रहते है .
चुनौतियाँ
अनेकानेक लाभ होने की बावजूद सरोगेसी ने कुछ पेचीदा चुनोतियाँ भी खड़ी कर दी है. ये चुनौतियाँ हैं –
- यदि होने वाली संतान में कुछ जन्मजात दोष हो तो वास्तविक माता-पिता का बच्चे को अपनाने से मना कर देना
- सरोगेसी की 9 महीने की अवधि के दौरान माता-पिता का तलाक एवं बच्चे के ऊपर दोनों की दावेदारी या किसी की भी दावेदारी का नहीं होना
- माता-पिता की बच्चे के जन्म से पहले मृत्यु के पश्चात् अभिभावक की अस्पष्टता
- जन्म के बाद सरोगेट माता के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव एवं उनका निवारण और खर्च
- विदेशी जोड़े के द्वारा सरोगेसी की अवधि के दौरान या जन्म के बाद सम्पर्क टूट जाना
- बच्चा जनने योग्य होने पर भी किसी दंपति का जानबूझकर सरोगेसीका प्रयोग करना विशेषकर सिनेमा के लोगों के द्वारा
- अकेले महिला, पुरुष या समलैंगिक जोड़े का सरोगेसी के द्वारा बच्चे प्राप्त करने का प्रचलन
- चिकित्सकों एवं दलाओं द्वारा थोड़े धन के लालच में गरीब महिलाओं को इस पेशे में घसीट कर एक गोरखधंधे का रूप देना
उपर्युक्त सभी कुछ ऐसे मामले हैं जिनका निवारण अनिवार्य है .
सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016
इसी निवारण और सरोगेसी के विनियमन के लिए सरकार सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2016 के लेकर आई जिसको लोक सभा ने पास कर दिया और जो राज्य सभा में विचाराधीन है . इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
- सरोगेसी को व्यावसायिक की जगह परोपकारी बनाया गया है और व्यावसायिक सरोगेसी को प्रतिबंधित किया गया है
- केवल भारतीय नागरिक ही सरोगेसी के द्वारा बच्चे पैदा करने के लिए योग्य हैं. परन्तु विदेशी जन, प्रवासी भारतीय, भारतीय मूल के व्यक्तियों को इसकी अनुमति नहीं है
- यह विधेयक एक राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड, राज्य सरोगेसी बोर्ड के गठन और सरोगेसी के संचालन के नियमन के लिए उपयुक्त अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान करता है
- सरोगेट माँ और इच्छुक दंपति को उपयुक्त प्राधिकारी से पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त करना अनिवार्य करता है.
- केवल एक विषमलैंगिक शादीशुदा जोड़ा जिनके विवाह को 5 वर्ष हो गए हो और किसी संतान की प्राप्ति नहीं हुई है , वही सरोगेसी के द्वारा संतान का सुख पाने के योग्य है
- सरोगेट माता का चयन केवल निकट सगे संबंधियों से ही किया जा सकता है और उसको केवल चिकित्सा संबंधी ही खर्च दिया जाएगा. इस प्रकार सरोगेसी के व्यासायिक प्रयोग को समाप्त करते हुए उसमें परोपकारता (altruism) का पुट दिया गया है.
- समलैंगिक, एकल माता-पिता और लिव-इन जोड़ों को सरोगेसी के द्वारा बच्चे पैदा करने की अनुमति नहीं है.
- जिन जोड़ों के पास पहले से बच्चे हैं, उन्हें सरोगेसी पर जाने की अनुमति नहीं होगी, हालांकि वे एक अलग कानून के तहत बच्चों को गोद लेने के लिए स्वतंत्र होंगे.
लाभ
सरोगेसी को विनियमित किया गया है. अब केवल निःसंतान दंपति ही सरोगेसी का उपयोग कर सकते हैं. नियमन के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में ही सरोगेसी का उपयोग जनसंख्या नियंत्रण को भी सुनिश्चित करेगा. महिलाओं की स्थिति में सुधार लायेगा, समाज में उनके आदर को बढ़ाएगा और बहुविवाह प्रथा में कमी लाने में सहायक होगा .सभी हितधारको जैसे सरोगेट माता, निःसंतान दंपति और डॉक्टर के हितो का ध्यान रखते हुए , अवांछनीय मुदमेबाजी में कमी और बच्चे को उसका वैध हक दिलवाने में यह विधेयक सहायक होगा .
चिंताएँ
अधिनियम में सरोगेसी को पूर्णतया परोपकारी (altruist) रूप देने के लिए इसे निकट-सगे संबंधियों के बीच सीमित रखने का प्रावधान किया गया है. परन्तु ये सगे-सम्बन्धी कौन होंगे, यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है जबकि मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 जैसे समान अधिनियम में सगे संबंधियों जैसे पति, पुत्र, पुत्री, पिता, माता, भाई या बहन की परिभाषा को स्पष्ट रूप से बताया गया है. इस अस्पष्टता के कारण हितधारक इसका दुरुपयोग कर सकते हैं. साथ ही साथ यह विधेयक सरोगेट माता के चयन के बारे में स्पष्ट प्रावधान नहीं करता है. जिन दम्पतियों की संतान मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से सामान्य नहीं है, वे सरोगेसी का चयन नहीं कर सकते हैं, जो उचित प्रतीत नहीं होता है. IVF तकनीक के सांख्यिकी आंकड़ो को इकट्ठा करना और उसके आधार पर उसको और अधिक सुदृढ़ , प्रभावशील बनाने के बारे में भी अधिनियम मौन है .
विज्ञान ने मानव जीवन को सरल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और सरोगेसी भी इसका एक उदाहरण है जिसने निःसंतान दंपति को संतान का सुख प्राप्त करने योग्य बनाया है . बढ़ती जनसंख्या और तकनीकों के प्रसार को ध्यान में रखते हुए सरोगेसी अधिनियम समय की जरूरत है ताकि जरूरतमंद दंपतियों को इसका लाभ मिल सके और दुरूपयोग को कम किया सके .
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Tags : LS passes Bill banning commercial surrogacy, What is altruistic surrogacy and commercial surrogacy? Provisions of Surrogacy (Regulation) Bill, 2016
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