केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को उनकी भू-संपत्ति को लेकर प्रॉपर्टी कार्ड मिलने प्रारम्भ हो गए हैं. इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक गाँव के घर और भूमि का रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा. गाँवों की सीमा के अन्दर आने वाली हर प्रॉपर्टी का एक डिजिटल नक्शा तैयार होगा. इन प्रॉपर्टी कार्डों को राज्य सरकारों द्वारा ही बनाया जाएगा. इस योजना पर 2020 से 2024 के दौरान चरणबद्ध तरीके से अमल कर देश के सभी 6.62 लाख गांवों को सम्मिलित करने का लक्ष्य है.
स्वामित्व योजना क्या है?
यह प्रधानमंत्री मोदी की डिजिटल इंडिया योजना का ही हिस्सा है. राष्ट्रीय पंचायत दिवस के अवसर पर 24 अप्रैल, 2020 को इसे अनावृत किया गया था. पंचायती राज मंत्रालय की इस योजना का पूरा नाम ‘सर्वेक्षण ऑफ़ विजिलेंस एंड मैपिंग विद इम्पोवरिश्ड टेक्नोलॉजी इन विलेज एरिया’ है. इसके अंतर्गत ड्रोन के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों की भूमि व हर प्रॉपर्टी का एक डिजिटल नक्शा तैयार करना है.
वैसे, अब सबकी निगाहें इस योजना के क्रियान्वयन पर रहेंगी, क्योंकि अच्छी योजनाएँ तो पहले भी बहुत -सी बनती रही हैं, परन्तु उन पर ठीक से अमल नहीं हो पाने से वे लालफीताशाही के चंगुल में फँसती रही हैं.
आधार कार्ड में लोगों के नाम, जन्म तिथि, फोटो आदि गलत लगने की ढेरों शिकायतें आती रही हैं. इससे बिना कारण लोग परेशान होते हैं. कहीं भू-रिकॉर्ड में गलत जानकारी दर्ज हो गई तो यह योजना गाँवों के लोगों की मुश्किलें और विवाद बढ़ा देगी. इसलिए सरकारी तंत्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह योजना पारदर्शी हो और लोगों को परेशानी न उठानी पड़े. इससे इस योजना की लोगों में विश्वसनीयता बढ़ेगी और इसकी सफलता भी सुनिश्चित होगी.
सरकार का कहना है कि लोग इस कार्ड का उपयोग बैंकों से कर्ज लेने के अलावा अन्य कार्यों में भी कर सकते हैं. इससे गाँवों में भूमि विवाद भी खत्म हो जाएँगे. भूमि के सत्यापन की प्रक्रिया में तीव्रता आएगी व भ्रष्टाचार को रोकने में सहयोग मिलेगा. सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में ग्रामीण क्षेत्रों की भूमि व प्रॉपर्टी का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार करने की योजना को सकारात्मक पहल कहा जा सकता है.
लाभ
- गाँवों तथा ग्राम पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशों को आधार प्रदान करने में सहायता प्राप्त होगी.
- संपत्ति कर के जरिये ग्राम पंचायतों की आमदनी के एक स्थायी स्रोत तथा स्थानीय व्यवस्था के लिये अतिरिक्त संसाधनों का प्रबंध किया जाएगा.
- एकीकृत संपत्ति सत्यापन व्यवस्था के जरिये संपत्ति सम्बन्धी विवाद को निपटाने में सहायता मिलेगी.
- प्राप्त आधिकारिक प्रमाण पत्र के जरिये संपत्ति मालिक अपनी संपत्ति पर बैंक ऋण तथा संपत्ति से जुड़ी अन्य योजनाओं का फायदा उठा सकेगें.
- वर्तमान ग्रामीण क्षेत्र में कृषि भूमि पर निर्मित मकानों तथा जोत के वास्तविक आकार के संदर्भ में उपलब्ध आँकड़ों में स्पष्टता की बहुत कमी है, इस योजना के माध्यम से कृषि जोत के आकार से जुड़े आँकड़ों को दृढ़ बनाने में सहयोग मिलेगा.
कैसे होगा संपत्ति का सर्वेक्षण?
केंद्र सरकार ने इस प्रकार के ‘आबादी क्षेत्रों’ में सर्वेक्षण के लिए राज्यों को अपने-अपने नियम बनाने के लिए कहा है.
सर्वेक्षण के दौरान ग्राम पंचायत के सदस्य, राजस्व विभाग के अधिकारी, गाँव के ज़मीन मालिक और झगड़ा-फसाद रोकने हेतु पुलिस की टीम मौक़े पर तैनात रहती है.
आपस में सहमति से अपनी-अपनी दावे वाली ज़मीन पर चूना लगा कर ज़मीन मालिक मोटी बाउंड्री बना देते हैं, जिसकी तस्वीर उड़ते ड्रोन से खींची जाती है. इसके लिए गाँव के कई चक्कर ड्रोन को लगाने होते हैं जिससे हर कोण से तस्वीरों का मिलान किया जा सके और कंप्यूटर की सहायता से ज़मीन का नक़्शा तैयार किया जा सके.
जिस गाँव का सर्वेक्षण होता है, वहाँ के सभी सदस्यों को इसकी सूचना पूर्व से ही दे दी जाती है, जिससे कुछ लोग जो दूसरी जगह नौकरी या किसी और काम से बाहर हों, वे भी सर्वेक्षण वाले दिन वहाँ आ सके.
एक बार पूरा नक़्शा तैयार कर लेने के पश्चात्, जिसके नाम की ज़मीन है, वह ब्यौरा पूरे गाँव को बताया जाता है. जिस किसी को कोई भी आपत्ति दर्ज करानी हो तो इसके लिए कम से कम 15 दिन और अधिक से अधिक 40 दिन का समय दिया जाता है.
जिस ज़मीन पर कोई आपत्ति नहीं होती और सभी पक्षों की सहमति होती है, राजस्व विभाग के अधिकारी उसके काग़ज़ात ज़मीन मालिक को सुपुर्द कर देते हैं. इसे ऑनलाइन माध्यम से डाउनलोड भी किया जा सकता है.
ऐसे घरों के मालिकाना हक़ के लिए राज्य सरकारें चाहें, तो इसके लिए अपना अलग-अलग क़ानून बना सकती हैं. मिसाल के तौर पर हरियाणा सरकार ने इस आबादी क्षेत्र की ज़मीन की जवाबदेही ग्राम पंचायतों के ज़िम्मे सौंप दी है.
इसलिए किसी भी विवाद को हल करने की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायतों की होगी. परन्तु ग्राम पंचायतों को आबादी क्षेत्र की जानकारी संबंधित राजस्व विभाग ही देगा. सभी राज्यों में यह काम ‘सर्वेक्षण ऑफ़ इंडिया‘ के साथ मिल कर किया जा रहा है.
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
अकबर के शासनकाल में राजा टोडरमल ने भारत में सबसे पहले भूमि पैमाइश शुरू की. इसके पश्चात् अंग्रेजों के काल में करीब पूरे देश के भू-रिकॉर्ड तैयार किए गए. ग्रामीण क्षेत्रों की भूमि का रिकॉर्ड तो राजस्व विभाग के पास विद्यमान होता है, पर मकानों को लेकर रिकॉर्ड करने की व्यवस्था अभी तक नहीं हो पाई थी. विलम्ब से ही सही, अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी शहरी क्षेत्रों की तरह मकानों के नक्शे व अन्य रिकॉर्ड सरकार के पास उपलब्ध हो जाएंगे.
चूंकि अब अधिकतर ग्राम पंचायतें इंटरनेट का फायदा उठा रही हैं, इसलिए अब स्वामित्व योजना पर अमल में परेशानी नहीं होनी चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले चरण में गांवों के भू-संपत्ति मालिकों को प्रॉपर्टी कार्ड वितरित करने की योजना का शुभारंभ किया. पहले चरण में लगभग एक लाख भू-संपत्ति मालिकों के मोबाइल फोन पर एसएमएस से लिंक भेजा गया और उसे डाउनलोड करने पर उन्हें प्रॉपर्टी कार्ड मिलने शुरू हो गए. इस तरह 763 गांवों के 1.32 लाख लोगों को ऑनलाइन प्रॉपर्टी कार्ड सौंपे गए. अब राज्य सरकारें विधिवत तौर पर लोगों को प्रॉपर्टी कार्ड बांटेंगी.
इस योजना से देश के गाँवों में ऐतिहासिक परिवर्तन आएगा. इस योजना ने देश के गाँव और गरीब लोगों को बड़ी शक्ति दी है. प्रॉपर्टी कार्ड का दस्तावेज एक कानूनी दस्तावेज है और इससे गाँव में रहने वाले लोग आत्मनिर्भर बनेंगे. आशा है कि स्वामित्व योजना भी गाँवों में कई विवादों को समाप्त करने का बहुत बड़ा माध्यम बनेगी. स्वामित्व योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्तियों के आँकड़ों में स्पष्टता लाने के साथ इसके जरिये ग्रामीण जनता तथा ग्राम पंचायतों को अधिक रूप से आत्मनिर्भर बनाकर ग्रामीण भारत के विकास को एक दृढ़ आधार प्रदान किया जा सकेगा.