द्वैध शासन से आप क्या समझते हैं? Diarchy in Hindi

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1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा प्रांतीय सरकार को मजबूत बनाया गया और द्वैध शासन (diarchy) की स्थापना की गई. 1919 के पहले प्रांतीय सरकारों पर केंद्र सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता था. लेकिन अब इस स्थिति में परिवर्तन लाकर प्रांतीय सरकारों को उत्तरदायी बनाने का प्रयास किया गया. इस द्वैध शासन का एकमात्र उद्देश्य था – भारतीयों को पूर्ण … Read More

तृतीय गोलमेज सम्मेलन – Third Round Table Conference

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1932 में पुनः एक गोलमेज सम्मेलन लंदन में हुआ. तृतीय गोलमेज सम्मेलन (Third Round Table Conference) का आयोजन 17 नवम्बर 1932 से 24 दिसम्बर 1932 तक किया गया. इस सम्मेलन में केवल 46 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. तृतीय गोलमेज सम्मेलन में मुख्यतः प्रतिक्रियावादी तत्वों ने ही भाग लिया. भारत की कांग्रेस तथा ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने इस सम्मेलन में … Read More

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन – Second Round Table Conference

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सरकार ने कांग्रेस को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (Second Round Table Conference) में सम्मिलित होने के लिए मनाने के प्रयास प्रारम्भ कर दिए. इसके तहत वाइसरॉय से वार्ता का प्रस्ताव दिया गया. इसके तहत वाइसरॉय से चर्चा के लिए आधिकारिक रूप से नियुक्त किया. गाँधी जी और वाइसरॉय इरविन की बातचीत 19 फरवरी, 1931 से शुरू हुई. 15 दिन की बातचीत … Read More

प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर, 1930 – 19 जनवरी, 1931)

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जिस दौरान पूरे भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रगति पर था और सरकार का दमन चक्र तेजी से चल रहा था, उसी समय वायसराय लॉर्ड इर्विन और मि. साइमन ने सरकार पर यह दबाव डाला कि वह भारतीय नेताओं तथा विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों से सलाह लेकर भारत की संवैधानिक समस्याओं का निर्णय करे. इसी उद्देश्य से लन्दन में तीन … Read More

जिन्ना की चौदह मांगें (Fourteen points of Jinnah)

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1928 ई. के राष्ट्रीय सम्मलेन में नेहरु रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था. नेहरु रिपोर्ट के बारे में जिन्ना ने यह कहा था कि – “नेहरु रिपोर्ट को हिंदुओं की ओर से मुस्लिम प्रस्तावों का जवाब था.” जिन्ना ने कांग्रेस प्रस्ताव को, जिसमें नेहरु रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था, मुस्लिम सम्प्रदाय का अपमान समझा और यह निष्कर्ष निकाला … Read More

स्वराज दल की स्थापना, उद्देश्य और पतन – Swaraj Party

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1921 ई. में महात्मा गाँधी द्वारा असहयोग आन्दोलन (Non Cooperation Movement) को बंद किये जाने के कारण बहुत-से नेता क्षुब्ध हो गए. इसी कारण कुछ नेताओं ने मिलकर एक अलग दल का निर्माण किया, जिसका नाम स्वराज दल रखा गया. इस दल की स्थापना 1 जनवरी, 1923 को देशबंधु चित्तरंजन दास तथा पं. मोतीलाल नेहरु ने की. इस दल का … Read More

असहयोग आन्दोलन 1920 – Non-Cooperation Movement in Hindi

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प्रथम विश्वयुद्ध (First World War) के बाद महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया और अब कांग्रेस की बागडोर उनके हाथों में आ गई.  महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक नयी दिशा ग्रहण कर ली. राजनीति में प्रवेश के पहले महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का प्रयोग कर चुके थे. उन्होंने विश्वयुद्ध में … Read More

उदारवादी युग (1885-1905) – नरमपंथी विचारधारा और नेताओं की भूमिका

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कांग्रेस के आरम्भिक 20 वर्षों के काल को “उदारवादी राष्ट्रीयता” की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इस काल में कांग्रेस कीं नीतियाँ अत्यंत उदार थीं. इस युग में भारतीय राजनीति के प्रमुख नेतृत्वकर्ता दादाभाई नौरोजी, फ़िरोज़शाह मेहता, दिनशा वाचा और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि जैसे उदारवादी थे. उदारवादियों की राजनीति के कुछ सुस्पष्ट चरण रहे हैं जिसके अंतर्गत इनके आन्दोलन … Read More

1857 Ki Kranti -Sepoy Rebellion/Mutiny in Hindi

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1857 Ki Kranti आज मैं 1857 ki Kranti के विषय में केवल उन्हीं तथ्यों को लिखूंगा जो आपकी परीक्षा में काम आ सकें. ठीक है, तो बताइये कि १८५७ की क्रांति किस ब्रिटिश गवर्नर जनरल के शासन काल में हुई थी? नहीं पता है तो आगे पढ़िए. लॉर्ड डलहौजी के पश्चात् लॉर्ड कैनिंग गवर्नल जनरल (governor general) बनकर भारत आया और … Read More

[भारतीय इतिहास] धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन

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19वीं शताब्दी में भारत नवजागरण की जिन प्रवृत्तियों के दौर से गुजर रहा था, उन्हें “समाज सुधार आन्दोलन (Social Reform Movements)” की संज्ञा दी जाती है. विभिन्न संस्थाओं तथा संगठनों ने धार्मिक तथा सामजिक सुधार के माध्यम से वैज्ञानिक तथा आधुनिक वैचारिक प्रवृत्तियों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज हम 19वीं शताब्दी में धर्म तथा समाज सुधार आन्दोलन … Read More