तीन तलाक ख़त्म, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला – 22 August, 2017

RuchiraBills and Laws: Salient Features, Polity Notes

स्वतंत्रता दिवस के ठीक 1 week के बाद मुस्लिम महिलाएँ भी स्वतंत्र हो गयीं. सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा judgment दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने 22 August, 2017 को तीन तलाक को ख़त्म कर दिया. आज से और अभी से मुस्लिम पुरुष तीन बार तलाक बोलकर/लिखकर अपनी पत्नी को आसानी से तलाक नहीं दे सकता. पाँच जजों के बेंच ने 3 तलाक पर यह बड़ा फैसला लिया. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध और असंवैधानिक बताया. जिसमें से 2 जज इस तीन तलाक के पक्ष में (जिसमें Chief Justice भी शामिल थे) थे और 3 जज इसके खिलाफ थे. इसलिए 3:2 के ratio के तहत तीन तलाक को हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया.

Pakistan, Egypt, Tunisia, Sri Lanka, Bangladesh, Turkey, Indonesia, Iraq आदि 22 Muslim बहुल देशों में भी तीन तलाक (teen talaq) की प्रथा नहीं है.

तीन तलाक और सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से 2 बातों पर विचार किया – 

  1. क्या 3 तलाक इस्लाम का मौलिक और अनिवार्य हिस्सा है? क्या 3 तलाक के बिना इस्लाम का स्वरूप बिगड़ जायेगा?
  2. क्या 3 तलाक मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकार के खिलाफ है?

संविधान के अनुच्छेद 25-26 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का जिक्र है. इनके तहत किसी धर्म से जुड़े लोगों को अपने धर्म के नियम और मान्यताओं का पालन करने के लिए आजादी हासिल होती है. हालाँकि इन अनुच्छेदों के तहत धर्म के उन्हीं नियमों और परम्पराओं को संरक्षण हासिल है जो धर्म का मौलिक और अनिवार्य हिस्सा हो यानी ऐसा हिस्सा जिसे हटा देने से धर्म का स्वरूप ही बिगड़ जायेगा. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय यह सोच कर लिया कि एक साथ तीन तलाक बोलने की व्यवस्था इस्लाम का क्या ऐसा ही मौलिक और अनिवार्य हिस्सा है जिसे हटाया नहीं जा सकता?

तीन तलाक आज के date से 6 महीने तक रद्द किया जा चुका है. 6 महीने के बाद तीन तलाक को हमेशा के लिए ख़त्म करने के पक्ष में संसद से कानून पास होना अनिवार्य है. अब संसद यदि यह कानून पास कर देती है तो न सिर्फ मुस्लिम तलाक के नियम तय हो जायेंगे बल्कि तलाक की स्थिति में मुस्लिम महिलाओं के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाना आसान हो जायेगा.

Update : 20/9/2018

हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने एक अध्यादेश का अनुमोदन किया है जिसके द्वारा तिहरी तलाक अथवा तलाके बिद्दत/बिद्दा को दंडनीय अपराध बना दिया गया है जिसके लिए तीन वर्ष की कैद हो सकती है. अध्यादेश इसलिए निकाला जा रहा है कि मुस्लिम महिला (वैवाहिक अधिकार सुरक्षा) विधेयक, 2017 लोक सभा में पारित होने के बाद राज्य सभा में अटक गया है.

अध्यादेश के प्रावधान

  • तिहरी तलाक एक संज्ञेय अपराध होगा जिसके लिए अधिकतम तीन वर्ष का कारावास और जुर्माना हो सकता है.
  • तीन तलाक को तभी अपराध माना जाएगा जब औरत या उसका कोई खूनी रिश्तेदार पुलिस में शिकायत दर्ज करेगा.
  • इस मामले में समझौता तभी होगा जब औरत इसके लिए मजिस्ट्रेट के सामने राजी होगी.
  • मजिस्ट्रेट जमानत तभी देगा जब पत्नी इसके लिए सहमति दी देगी.
  • बच्चों का संरक्षण औरत के पास रहेगा.
  • औरत मजिस्ट्रेट द्वारा तय किये गये संधारण (maintenance) खर्च माता को देय होगा.
  • यह कानून जम्मू और कश्मीर में लागू नहीं है.

तीन तलाक क्या है?

  • इस्लाम में तलाक के तीन प्रकार हैं – अहसान, हसन और तलाके बिद्दत (Teen Talaq)
  • इनमें से अहसान और हसन तलाक वापस ली जा सकती है, परन्तु तलाके बिद्दा वापस नहीं होती है.
  • ज्ञातव्य है कि तलाके बिद्दा 20 से अधिक मुसलमानी देशों, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित, में प्रतिबंधित हो चुका है.

तिहरी तलाक क्या है?

तिहरी तलाक अर्थात् तलाके बिद्दत में पुसुश एक बार में तीन बार तलाक शब्द बोलता है. वह फ़ोन पर भी ऐसा कर सकता है अथवा इसके लिए SMS भी कर सकता है. इसके लिए वह तलाकनामा भी दे सकता है. ऐसी तलाक तुरंत और अटूट रूप से लागू हो जाती है भले पुरुष बाद में समझौता करना भी चाहे.

भारत के पहले तीन तलाक पर 22 अन्य देश प्रतिबंध लगा चुके हैं जिनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान बांग्लादेश और श्रीलंका शामिल हैं.

यह भी पढ़ें:– Article 44- Uniform Civil Code क्या है?

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