1932 में पुनः एक गोलमेज सम्मेलन लंदन में हुआ. तृतीय गोलमेज सम्मेलन (Third Round Table Conference) का आयोजन 17 नवम्बर 1932 से 24 दिसम्बर 1932 तक किया गया. इस सम्मेलन में केवल 46 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. तृतीय गोलमेज सम्मेलन में मुख्यतः प्रतिक्रियावादी तत्वों ने ही भाग लिया. भारत की कांग्रेस तथा ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया. इस सम्मेलन में भारतीयों के मूल अधिकारों की मांग की गयी तथा गवर्नर जनरल के अधिकारों को प्रतिबंधित करने की माँग रखी गयी, परंतु सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. फलतः यह सम्मेलन भी विफल रहा. इन गोलमेज सम्मेलनों द्वारा भारत के संवैधानिक प्रश्नों का हल ढूंढ़ने का नाटक किया गया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. वर्ग विशेष के हितों और सरकारी नीतियों के चलते तीनों ही सम्मेलन विफल रहे. इनकी विपफलता के साथ-साथ साप्रंदायिकता का विकराल स्वरूप भी स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आ गया, जिसने बाद की घटनाओं को प्रभावित किया.
तीसरे गोलमेज सम्मलेन की समाप्ति के बाद एक श्वेत पत्र जारी किया गया जिस पर विचार करने के लिए लॉर्ड लिनलिथगो की अध्यक्षता में ब्रिटिश संसद द्वारा एक संयुक्त समिति गठित की गई. इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर “भारत सरकार अधिनियम, 1935” का निर्माण हुआ.
तृतीय गोलमेज सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधि
भारतीय प्रान्तों के प्रतिनिधि
अकबर हैदरी (हैदराबाद के दीवान), मिर्जा इस्माइल (मैसूर के दीवान), वी.टी. कृष्णामचारी (बड़ौदा के दीवान), वजाहत हुसैन (जम्मू और कश्मीर), सर सुखदेव प्रसाद (उदयपुर, जयपुर, जोधपुर), जे.ए. सुर्वे (कोल्हापुर), रजा अवध नारायण बिसर्य (भोपाल), मनु भाई मेहता (बीकानेर), नवाब लियाकत हयात खान (पटियाला).
ब्रिटिश-भारत के प्रतिनिधि
आगा खां तृतीय, डॉ. अम्बेडकर (दलित वर्ग), बोब्बिली के रामकृष्ण रंगा राव, सर हुबर्ट कार्र (यूरोपियन), नानक चंद पंडित, ऐ.एच. गजनवी, हनरी गिड़ने (आंग्ल-भारतीय), हाफ़िज़ हिदायात हुसैन, मोहम्मद इकबाल, एम.आर. जयकर, कोवासजी जहाँगीर, एन.एम. जोशी (मजदूर), ऐ.पी. पेट्रो, तेज बहादुर सप्रू, डॉ. सफाअत अहमद खां, सर सादिलाल, तारा सिंह मल्होत्रा, सर निर्पेंद्र नाथ सरकार, सर पुरुषोत्तम दास ठाकुर दास, मुहम्मद जफरुल्लाह खां.
सितम्बर, 1931 से मार्च, 1933 तक, भारत सचिव सैमुअल होअर के पर्यवेक्षण में, प्रस्तावित सुधारों को लेकर प्रपत्र तैयार किया गया जो भारत सरकार अधिनियम 1935 का प्रमुख आधार बना.
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