UK Parliament declares climate change emergency
Source : BBC
ब्रिटेन की संसद ने राष्ट्रीय जलवायविक आपातकाल घोषित कर दिया है. इस प्रकार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने वाला ब्रिटेन पहला देश बन गया है. इस आशय का जो प्रस्ताव वहाँ के निचले सदन में उपस्थापित किया गया उसको बिना मतदान किये अनुमोदित कर दिया गया. उल्लेखनीय है कि यह आपातकाल न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं होगा.
जलवायविक आपातकाल क्या है?
वैसे जलवायविक आपातकाल की कोई एक परिभाषा नहीं है, परन्तु इसका अभिप्राय यह है कि देश को 2030 तक कार्बन न्यूट्रल बना दिया जाए. वैसे ब्रिटेन की सरकार ने 2050 तक कार्बन उत्सर्जन में 80% (1990 के स्तर की तुलना में) कमी लाने का लक्ष्य बना रखा है. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि राष्ट्रीय जलवायविक आपातकाल में संकल्पित लक्ष्य सरकारी लक्ष्य से बहुत आगे का है.
आपातकाल की घोषणा क्यों?
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की विभीषिका से बचने के लिए अब मात्र 11 वर्ष बचे हैं. इस परिस्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय आपातकाल का प्रस्ताव दिया गया. प्रस्ताव की भावना है यह कि न केवल स्थानीय स्तर पर कार्बन उत्सर्जन घटाया जाए, अपितु सांसदों को जलवायु परिवर्तन के विषय में जागरूक किया जाये.
इस घोषणा से सरकार लक्ष्य को पाने के लिए आवश्यक संसाधनों का प्रबंध करने की दिशा में अग्रसर होगी.
आगे की राह
वैश्विक तापवृद्धि में कोई ठहराव नहीं आया है. समुद्रों में जमा ताप भविष्य में वैश्विक तापवृद्धि को आगे बढ़ाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है. अतः सभी देश इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि 2016 में 197 देशों द्वारा हस्ताक्षरित संयुक्त राज्य पेरिस समझौते के अनुसार समुचित कदम उठाये जाएँ.
ज्ञातव्य है कि इस समझौते में यह लक्ष्य रखा गया था कि औद्योगिक युग (19वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध) के समय जो वैश्विक तापमान था उसकी तुलना में वर्तमान वैश्विक तापमान को 2100 ई. तक 2˚C अधिक तक सीमित रखा जाए. यद्यपि अच्छा तो यह होता कि यह अंतर 1.5˚C ही रहता.
जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अंतरसरकारी पैनल के एक प्रतिवेदन के अनुसार यदि यह लक्ष्य पाना है तो 2030 तक वार्षिक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को आधा करना आवश्यक होगा. तभी 2050 तक शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है.