संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में जानें – United Nations in Hindi

RuchiraPolity Notes

आज हम संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में व्यापक चर्चा करेंगे. जानेंगे इसका इतिहास, इसके उद्देश्य, इसके सिद्धांत और इसके अंगों के बारे में. ज्ञातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) के 6 अंग हैं – महासभा, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, सचिवालय एवं विशिष्ट एजेंसियाँ . वर्तमान में इसमें कुल सदस्य देशों की संख्या 193 है और महासचिव के रूप में पुर्तगाल के एंटोनियो गुटेरेस कार्यरत हैं. इसकी आधिकारिक भाषाएँ हैं – अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, स्पेनिश, मैंडरिन और रसियन. चलिए जानते हैं UNO के तमाम details को in Hindi.

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संयुक्त राष्ट्र संघ का इतिहास

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई याल्टा बैठक (Yalta Conference) के निर्णय के अनुसार 25 अप्रैल से 26 जून 1945 तक सैन फ्रांसिस्को में संयुक्त राष्ट्रों (allied countries) का सम्मलेन आयोजित हुआ. सम्मलेन ने जर्मनी के आत्मसमर्पण से पहले से ही संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र पर विचार करना शुरू कर दिया था. जापान के आत्मसमर्पण के पहले 26 जून को 51 देशों ने, जिसमें भारत भी शामिल था, एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये. यह घोषणा पत्र 24 अक्टूबर 1945 से प्रभावी हो गया.

इस घोषणा पत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य तथा गठन की परिभाषा दी गई है. संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) के निर्माण का उद्देश्य विश्व में विद्यमान संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान करना था. विश्व राजनीति का सञ्चालन बल और हिंसा को परे रखकर सहयोग और सह-अस्तित्व के आधार पर होना चाहिए, ऐसा घोषणा पत्र में उल्लिखित है. यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए अपरिहार्य है और यह बहुपक्षवाद का आधार है. यह मानव के निम्नतर विकास से उच्चतर विकास का द्योतक है. मानव के इस उच्चतर विकास में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, स्वतंत्रता समानता और मानवाधिकार जैसे मूल्य प्रमुख हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ का मूल आधार अंतर्राष्ट्रीय विधि पर टिका है जिसके अनुसार सभी राज्य समान सम्प्रभुता संपन्न हैं.

उद्देश्य

संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र की धारा एक के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) के निम्नलिखित उद्देश्य हैं –

  1. विश्व में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बहाल करना.
  2. समान अधिकारों एवं जनता के स्वनिर्धारण के सिद्धातों के आधार पर देशों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध का विकास करना.
  3. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक-सामाजिक संस्कृति और मानवीय समस्याओं के निराकरण तथा मानवाधिकारों व मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति निष्ठा के संवर्धन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करना.
  4. इन सामूहिक लक्षणों की प्राप्ति में राष्ट्रों के क्रियाकलाप में सहमति बनाने वाले केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाना.

सिद्धांत

चार्टर की धारा 2 में संयुक्त राष्ट्र संघ के मार्गदर्शन के लिए सात सिद्धांतों का उल्लेख है –

  1. संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्यों की संप्रभु समानता.
  2. संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) द्वारा स्वीकृत किये गये चार्टर के सभी उत्तरदायित्वों का स्वेच्छा से पालन करना.
  3. अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान ताकि अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और न्याय खतरे में न पड़े.
  4. सभी सदस्य ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे अन्य देशों की प्रादेशिक अखंडता पर आँच न आये.
  5. सभी सदस्य संयुक्त राष्ट्र संगठन को हर संभव सहायता उपलब्ध कराएँगे तथा ऐसे देश को किसी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं करेंगे जिसके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संगठन कोई कार्रवाई कर रहा होगा.
  6. संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) इस बात का प्रयास करेगा कि जो देश संगठन के सदस्य नहीं है वे भी संगठन के सिद्धांतों के अनुकूल आचरण करे.
  7. जो मामले मूल रूप से किसी भी देश के आंतरिक क्षेत्राधिकार (घरेलू अधिकारिता) में आते हैं उनमें संयुक्त राष्ट्र हस्तक्षेप नहीं करेगा.

अंग

संयुक्त राष्ट्र संघ के 6 अंग हैं –

  1. संयुक्त राष्ट्र महासभा (General Assembly)
  2. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (Security Council)
  3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council)
  4. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
  5. संयुक्त राष्ट्र सचिवालय (Secretariat)
  6. विशिष्ट एजेंसियाँ (Specialized Agencies)

महासभा

महासभा (General Assembly) एक लोकतान्त्रिक संस्था है क्योंकि इसमें सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व होता है. यह एक प्रकार से विश्व संसद की तरह है. यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य विचार-विमर्श निकाय है जो मुक्त एवं उदार बातचीत के जरिये समस्याओं के समाधान ढूँढने का प्रयास करता है. यह विश्व का स्थायी मंच एवं बैठक कक्ष है. इसका गठन कुछ इस मान्यता पर आधारित है – “शब्दों से लड़ा जाने वाला युद्ध तलवारों से लड़े जाने वाले युद्ध से श्रेयस्कर है.”

महासभा की अध्यक्षता एक महासचिव द्वारा की जाती है, जो सदस्य देशों एवं 21 उप-अध्यक्षों के द्वारा चुने जाते हैं. इसमें सामान्य मुद्दों पर फैसला लेने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरुरत होती है.

सभा को संयुक्त राष्ट्र के घोषणा-पत्र की परिधि में आने वाले तमाम मुद्दों पर बहस एवं अनुशंसा करने का अधिकार प्राप्त है. हालाँकि इसके फैसले को मानना सदस्य राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं है, तथापि उन फैसलों में विश्व जनमत की अभिव्यक्ति होती है.

महासभा राष्ट्रीय संसद की तरह कानून का निर्माण नहीं करती है फिर भी संयुक्त राष्ट्र में छोटे-बड़े धनी-निर्धन और विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक व्यवस्था वाले देशों के प्रतिनिधियों को अपनी बात करने और वोट देने का अधिकार प्राप्त होता है.

महासभा में कार्यों को करने हेतु कई प्रकार की समितियाँ हैं –

  1. निःशस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा समिति
  2. आर्थिक एवं वित्तीय समिति
  3. सामाजिक, मानवीय एवं सांस्कृतिक समिति
  4. राजनीतिक एवं औपनिवेशक स्वतंत्रता समिति
  5. प्रशासनिक एवं आय-व्यय सम्बन्धी समिति
  6. विधि समिति

महासभा की बैठक प्रतिवर्ष सितम्बर माह से होती है. इसी बैठक में विभिन्न अध्यक्ष और कई उपाध्यक्षों का निर्वाचन होता है. अनुच्छेद 18 के अनुसार महासभा में किसी भी देश के 5 से अधिक प्रतिनिधि नहीं होंगे.

सुरक्षा परिषद्

संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की होती है. इसकी बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है. इसके फैसले का अनुपालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है. इसमें 15 सदस्य देश शामिल होते हैं जिनमें से पाँच सदस्य देश – चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका – स्थायी सदस्य हैं. शेष दस सदस्य देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है. चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है.

ज्ञातव्य है कि कार्यप्रणाली से सम्बंधित प्रश्नों को छोड़कर प्रत्येक फैसले के लिए मतदान की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई भी स्थायी सदस्य अपना वोट देने से मना कर देता है तब इसे “वीटो” के नाम से जाना जाता है.

परिषद् (Security Council) के समक्ष जब कभी किसी देश के अशांति और खतरे के मामले लाये जाते हैं तो अक्सर वह उस देश को पहले विविध पक्षों से शांतिपूर्ण हल ढूँढने हेतु प्रयास करने के लिए कहती है. परिषद् मध्यस्थता का मार्ग भी चुनती है. वह स्थिति की छानबीन कर उस पर रपट भेजने के लिए महासचिव से आग्रह भी कर सकती है. लड़ाई छिड़ जाने पर परिषद् युद्ध विराम की कोशिश करती है.

वह अशांत क्षेत्र में तनाव कम करने एवं विरोधी सैनिक बलों को दूर रखने के लिए शांति सैनिकों की टुकड़ियाँ भी भेज सकती है. महासभा के विपरीत इसके फैसले बाध्यकारी होते हैं. आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अथवा सामूहिक सैन्य कार्यवाही का आदेश देकर अपने फैसले को लागू करवाने का अधिकार भी इसे प्राप्त है. उदाहरणस्वरूप इसने ऐसा कोरियाई संकट (1950) तथा ईराक कुवैत संकट (1950-51) के दौरान किया था.

कार्य

  1. विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना.
  2. हथियारों की तस्करी को रोकना.
  3. आक्रमणकर्ता राज्य के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करना.
  4. आक्रमण को रोकने या बंद करने के लिए राज्यों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना.

संरचना

सुरक्षा परिषद् (Security Council) के वर्तमान समय में 15 सदस्य देश हैं जिसमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी हैं. वर्ष 1963 में चार्टर संशोधन किया गया और अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई. अस्थायी सदस्य विश्व के विभिन्न भागों से लिए जाते हैं जिसके अनुपात निम्नलिखित हैं –

  1. 5 सदस्य अफ्रीका, एशिया से
  2. 2 सदस्य लैटिन अमेरिका से
  3. 2 सदस्य पश्चिमी देशों से
  4. 1 सदस्य पूर्वी यूरोप से

चार्टर के अनुच्छेद 27 में मतदान का प्रावधान दिया गया है. सुरक्षा परिषद् में “दोहरे वीटो का प्रावधान” है. पहले वीटो का प्रयोग सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य किसी मुद्दे को साधारण मामलों से अलग करने के लिए करते हैं. दूसरी बार वीटो का प्रयोग उस मुद्दे को रोकने के लिए किया जाता है.

परिषद् के अस्थायी सदस्य का निर्वाचन महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किया जाता है. विदित हो कि 191 में राष्ट्रवादी चीन (ताईवान) को स्थायी सदस्यता से निकालकर जनवादी चीन को स्थायी सदस्य बना दिया गया था.

इसकी बैठक वर्ष-भर चलती रहती है. सुरक्षा परिषद् में किसी भी कार्यवाही के लिए 9 सदस्यों की आवश्यकता होती है. किसी भी एक सदस्य की अनुपस्थिति में वीटो अधिकार का प्रयोग स्थायी सदस्यों द्वारा नहीं किया जा सकता.

आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्

आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council) के 54 सदस्य हैं जिसमें 18 सदस्य 3 वर्षों के लिए निर्वाचित होते हैं. सामान्यतः इसकी बैठक साल में दो बार होती हैं. यह संयुक्त राज्य और उसकी विशेषज्ञ एजेंसियों, जैसे – अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), खाद्य एवं श्रमिक संघटन (FAO), यूनेस्को (UNESCO), विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कार्यों का समन्वयन करती है.

कार्य

इसके कार्य कुछ इस प्रकार हैं –

  1. विकासशील देशों में आर्थिक गतिविधियों में संवर्द्धन करना
  2. विकास और मानवीय आवश्यकताओं की सहायता-प्राप्त परियोजनाओं का प्रबंधन करना
  3. मानवाधिकार के अनुपालन को मजबूत करना
  4. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लाभों का विस्तार करना
  5. बेहतर आवास, परिवार नियोजन तथा अपराध-निस्तारण के क्षेत्र में विश्व सहयोग को बहाल करना

आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के अधीन अनेक आयोगों की स्थापना की गई है जिसमें सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (Millennium Development Goals – MDGs) को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना प्रमुख है.

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) का मुख्यालय हॉलैंड शहर के हेग में स्थित है. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में वैधानिक विवादों के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना की गई है. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय परामर्श माना जाता है एवं इसके द्वारा दिए गये निर्णय को बाध्यकारी रूप से लागू करने की शक्ति सुरक्षा परिषद् के पास है. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के द्वारा राज्यों के बीच उप्तन्न विवादों को सुलझाया जाता है, जैसे – सीमा विवाद, जल विवाद आदि. इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेंसियाँ अंतर्राष्ट्रीय विवाद के मुद्दों पर इससे परामर्श ले सकती हैं.

संरचना

न्यायालय की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है. किसी एक राज्य के एक से अधिक नागरिक एक साथ न्यायाधीश नहीं हो सकते. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं जिनका कार्यकाल 9 वर्षों का होता है.

सचिवालय

संयुक्त राष्ट्र सविचालय संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रशासनिक संस्था है जिसका कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों का प्रशासनिक प्रबंध करना है. संयुक्त राष्ट्र संघ का महासचिव, संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations – UN) का प्रशासनिक प्रधान होता है और महासचिव की नियुक्ति महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो तिहाई सदस्यों द्वारा होती है. चार्टर में महासचिव के कार्यकाल का कोई प्रावधान नहीं है परन्तु महासभा के द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर महासचिव की नियुक्ति 5 वर्षों के लिए होती है और वह दोबारा भी नियुक्त किया जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की भूमिका सचिवालय के प्रधान तथा कूटनीतिज्ञ के रूप में देखी जाती है.

विशिष्ट एजेंसियाँ

संयुक्त राष्ट्र चार्टर में यह प्रावधान था कि आवश्यकता पड़ने पर इसकी प्रमुख अंगीभूत संस्थाएँ अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार विशिष्ट संगठन का निर्माण कर सकें. ऐसे संगठनों को विशिष्ट एजेंसियाँ कहा जाता है जिनमें प्रमुख हैं – अंतर्राष्ट्रीय आणविक ऊर्जा एजेंसी, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), UNESCO, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO).

इन विशिष्ट संगंठनों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ अपने अधिकांश मानवतावादी कार्य संपादित करता है. नीचे कुछ इसी तरह की प्रमुख विशिष्ट एजेंसियों के नाम दिए गए हैं और बगल में उनके मुख्यालय का भी उल्लेख है –

  • FAO (Food and Agriculture Organization) – रोम, इटली
  • ILO (International Labour Organization) – जेनवा, स्विट्ज़रलैंड
  • IMF (International Monetary Fund) – वाशिंगटन DC, अमेरिका
  • UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) – पेरिस, फ़्रांस
  • WHO (World Health Organization) – जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
  • WIPO (World Intellectual Property Organization) – जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड

Ruchira Mam के भारतीय राज्यव्यवस्था से सम्बंधित नोट्स यहाँ उपलब्ध हैं >> Polity Notes in Hindi

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