मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Modern History GS Paper 1/Part 16

Dr. SajivaGS Paper 1 2020-21, Sansar Manthan

“पूर्व के अधिनियमों की तरह ही 1919 ई० का अधिनियम भी भारतीयों को संतुष्ट नहीं कर सका.” इस कथन की समीक्षा कीजिए.

“Like the earlier acts the 1919 Act also could not satisfy Indians.” Review this statement.

क्या न करें

❌सीधे 1919 अधिनियम के बारे में लिखना शुरू न कर दें.

क्या करें

✅प्रारम्भ में कुछ पूर्व के अधिनियमों का उल्लेख जरूर करें.

✅अंत में एक दो वाक्य अधिनियम के पक्ष में रख देने से परीक्षक पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.

उत्तर:-

भारतीय परिषद् अधिनियम 1861 ने जहाँ केंद्रीकरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया, वहीं भारतीय परिषद् अधिनयम 1892 भारतीयों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहा. वहीं भारतीय परिषद् अधिनियम 1909 भले ही नरमपंथी राष्ट्रवादियों को संतुष्ट करने के लिए बनाया गया था परन्तु वास्तव में इसका उद्देश्य राष्ट्रवादियों को उलझन में डालना, राष्ट्रवादी जमात में फूट डालना और भारतीयों के बीच एकता न होने देना था. 

कांग्रेस ने 1919 ई. के अधिनियम को “निराशजनक और असंतोषप्रद” (disappointing and unsatisfactory) कहा. अधिनियम द्वारा किए गए सुधार देखने में बड़े महत्त्वपूर्ण लगे, परंतु इनसे वस्तुस्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ. सबसे बड़ी बात तो यह थी कि इस अधिनियम ने वर्ग-विभेद एवं सांप्रदायिकता की भावना को बढ़ावा दिया.

केंद्रीय कार्यकारिणी में यद्यपि अब भारतीयों को भी स्थान मिला, लेकिन उन्हें कम महत्त्वपूर्ण विभाग ही सौंपे गए. इन सदस्यों पर वायसराय का इतना अधिक प्रभाव था कि वे स्वतंत्रतापूर्वक कोई भी कार्य नहीं कर सकते थे. केंद्रीय एवं प्रांतीय विषयों का बँटवारा स्वेच्छाचारी ढंग से किया गया था.

केंद्रीय विधानमंडल की भूमिका भी वायसराय के सामने गौण थी. इसलिए, कहा गया कि 1919 ई० के अधिनियम ने केंद्र में उत्तरदायी सरकार की नहीं, बल्कि प्रतिचारी सरकार को स्थापना की. सबसे दोषपूर्ण व्यवस्था द्वैध शासन की थी. प्रशासन एवं प्रशासनिक विषयों का दो स्वतंत्र इकाइयों में विभाजन कर प्रशासनिक अव्यवस्था ही लागू की गई. इस व्यवस्था को ही भद्दा, अममय तथा जटिल कहा गया.

प्रशासन के दोनों भागों में विरोधाभास था. सबसे दयनीय स्थिति मंत्रियों की थी. एक तरफ तो उन्हें गवर्नर को प्रसन्न रखना पड़ता और दूसरी तरफ विधानपरिषद को. इन दोनों के विचारों में सदैव विरोधाभास होता था. इसलिए, मंत्री ज्यादातर गवर्नर की इच्छानुसार ही कार्य करते थे. गवर्नर मंत्रियों की उपेक्षा भी करते थे और अनेक मामलों पर उनकी राय जानने की भी आवश्यकता महसूस नहीं करते थे. गवर्नर मंत्रियों से अधिक नौकरशाही की सलाह मानते थे. फलतः, मंत्रियों का अपने विभागों पर भी नियंत्रण नहीं रहा. वे पदाधिकारियों का स्थानांतरण भी अपनी इच्छानुसार आसानी से करने में असमर्थ थे. उनके सामने आर्थिक समस्या भी थी. आवश्यक धन के लिए उन्हें वित्त विभाग पर निर्भर रहना पड़ता था जिसपर गवर्नर और नौकरशाही तथा वित्त सदस्य का नियंत्रण था. ऐसी परिस्थिति में प्रांतीय मंत्री कोई भी प्रभावशाली भूमिका नहीं निभा सके. पृथक मतदान एवं सुरक्षित स्थानों की व्यवस्था ने सांप्रदायिकता की भावना को और अधिक विकसित कर दिया. मताधिकार का अधिकार भी कुछ व्यक्तियों को ही मिल सका. इन आलोचनाओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि उत्तरदायी शासन की स्थापना की दिशा में 1919 ई० का अधिनियम एक कदम और आगे बढ़ा.

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किन परिस्थतियों के चलते ब्रिटिश संसद को रेग्युलेटिंग एक्ट को लागू करने के लिए विवश होना पड़ा? चर्चा कीजिए.

Under what circumstances the British Parliament was forced to implement the Regulating Act? Discuss.

क्या न करें

❌बहुत सारे छात्र रेग्युलेटिंग एक्ट के प्रावधानों को लिखने लगते हैं जो उत्तर की माँग है ही नहीं.

क्या करें

✅ब्रिटिश सरकार को रेग्युलेटिंग एक्ट को लाना क्यों पड़ा, यदि आप जानते हैं तो उत्तर लिखना आपके लिए सरल हो जायेगा.

उत्तर:-

ब्रिटिश राजनीतिज्ञ नहीं चाहते थे कि बंगाल से प्राप्त होनेवाला धन सिर्फ कंपनी के पास ही रहे. अतः, उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि वह कंपनी को प्राप्त होनेवाले धन का कुछ भाग वसूले. भारत से प्राप्त धन का प्रयोग इंगलैंड के सार्वजनिक ऋण को कम करने तथा अंग्रेजों पर से करों का बोझ कम करने के लिए किया जा सकता था. वस्तुतः अनेक ब्रिटिश राजनीतिज्ञ कंपनी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित थे. उन्हें भय था कि भारतीय धन का सहारा लेकर कंपनी ब्रिटिश शासन और राजनीति को भ्रष्ट कर देगी तथा उसपर नियंत्रण स्थापित कर लेगी. ऐसी स्थिति ब्रिटिश जनता की स्वतंत्रता के लिए खतरनाक हो सकती थी. इसलिए, कंपनी और उसके अधिकारियों की गतिविधियों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया. इस उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने 1767 ई० में एक कानून बनाकर कंपनी को बाध्य किया कि वह प्रतिवर्ष ब्रिटिश सरकार को अपनी आमदनी में से 400,000 पौंड की राशि दे.

1772 ई० तक बंगाल के आर्थिक संसाधनों का कंपनी, उसके कर्मचारियों और पदाधिकारियों ने व्यक्तिगत लाभ के लिए पूरा उपयोग किया. फलस्वरूप, कंपनी के संचालकों एवं अधिकारियों की व्यक्तिगत संपत्ति में वृद्धि हुई, परंतु कंपनी की आर्थिक स्थिति लचर गई. यह ब्रिटिश सरकार को दी जानेवाली वार्षिक राशि को चुकाने में असमर्थ रही. इतना ही नहीं, उसे ब्रिटिश सरकार से 10 लाख पौंड की राशि भी कर्ज के रूप में माँगनी पड़ी. यह एक विचित्र स्थिति थी. अब इस बात की आवश्यकता महसूस की जाने लगी कि कंपनी की गतिविधियों पर प्रभावशाली नियंत्रण स्थापित किया जाए. ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का मुख्य उद्देश्य था कंपनी और इंगलैंड के विभिन्न वर्गों के हितों की सुरक्षा का उचित प्रबंध करना तथा उनमें समन्वय स्थापित करना. इस उद्देश्य से ब्रिटिश संसद ने भारत में कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित एवं निर्देशित करने के लिए 1773 ई० में पहला कानून बनाया. यह कानून था रेग्युलेटिंग एक्ट. इस एक्ट के द्वारा सरकार ने पहली बार कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने का अवसर प्राप्त हुआ. 

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