History and Culture Answerkey UPSC 2020 Preliminary Examination
भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, ‘परामिता‘ शब्द का सही विवरण निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(a) सूत्र पद्धति में लिखे गए प्राचीनतम धर्मशास्त्र पाठ
(b) वेदों के प्राधिकार को अस्वीकार करने वाले दार्शनिक सम्प्रदाय
(c) परिपूर्णताएँ जिनकी प्राप्ति से बोधिसत्व पथ प्रशस्त हुआ
(d) आरम्भिक मध्यकालीन दक्षिण भारत की शक्तिशाली व्यापारी श्रेणियाँ
Explanation:
एक तो UPSC से ऐसी ही उम्मीद रहती है कि वह किसी शब्द को अंग्रेजी के प्रभाव में लिख देते हैं जो बहुत ही निंदनीय है. शब्द “’परामिता’” गलत है. सही शब्द “पारमिता” है. चूंकि इंग्लिश में “Paramitas” है तो उनको कुछ सूझा नहीं. “पारमिता” का अर्थ है, सबसे ऊँची अवस्था. यानी इसको प्राप्त करने पर लोग महाज्ञानी हो जाते हैं. पारमिताएं भी दस होती हैं, यथा-दान, शील, क्षान्ति, वीर्य, ध्यान, प्रज्ञा, उपायकौशल, प्रणिधान, बल एवं ज्ञान पारमिता. बोधिसत्त्व प्रत्येक भूमि में सामान्यत: इन सभी पारमिताओं का अभ्यास करता है. हीनयान में अष्टांगिक मार्ग पर जोर है, तो महायान में पारमिता मार्ग पर.
भारतीय इतिहास के संदर्भ में, 1884 का रखमाबाई मुक़दमा किस पर केन्द्रित था?
- महिलाओं का शिक्षा पाने का अधिकार
- सहमति की आयु
- दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
Explanation:
रखमाबाई का जन्म महाराष्ट्र में 1864 में हुआ था. उनकी विधवा मां ने उनकी 11 साल की उम्र में ही शादी कर दी थी. हालांकि वो कभी भी अपने पति के यहां रहने नहीं गईं और अपने मां के पास ही रहीं. उनकी मां ने एक सर्जन सखाराम अर्जुन के साथ शादी कर ली. रखमाबाई पर उनके सौतेले पिता का काफ़ी असर था. रखमाबाई ने अपने पति के साथ जाने से इनकार कर दिया और उस ज़माने में इस पर काफ़ी हंगामा मचा. वो इस बात पर अड़ी रहीं कि उस विवाह बंधन में वो नहीं रहेंगी जिसमें उनकी मर्जी नहीं है. चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर बनाने के पीछे उनके पिता की प्रेरणा रही. उनके पिता ने ही रखमाबाई का समर्थन किया कि उन्हें अपने पति के घर नहीं जाना चाहिए क्योंकि वो कम उम्र में गर्भवती होने के ख़िलाफ़ थे. बाद में रुखमाबाई ने लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन से मेडिकल की डिग्री हासिल की. सखाराम अर्जुन ने महिला स्वास्थ्य, साफ़ सफ़ाई और मातृत्व के समय देख रेख पर एक किताब भी लिखी थी. ऐसा उस समय किया जब इन विषयों पर बात करना भी एक टैबू माना जाता था.
रखमाबाई के पति दादाजीभीकाजी ने वैवाहिक अधिकार के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन रखमाबाई ने इसके ख़िलाफ़ संघर्ष किया और यही मुकदमा भारत में शादी की उम्र को तय करने का आधार बना.
रखमाबाई ने इस बारे में क्वीन विक्टोरिया को ख़त लिखा. आखिरकार फैसला उनके पक्ष में हुआ. हालांकि समाजिक सुधारकों ने इसकी तारीफ़ की लेकिन उस समय के प्रमुख नेता बाल गंगाधर तिलक ने इस फैसले की काफ़ी आलोचना की.
भारत में ‘सहमति की उम्र’ को लेकर रखमाबाई का योगदान काफ़ी बड़ा था. वो महिला अधिकारों को लेकर टाइम्स ऑफ़ इंडिया में ‘द हिंदू लेडी’ के नाम से लेख भी लिखती थीं.
निम्नलिखित में से किस कारण से भारत में बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में नील की खेती का ह्रास हुआ?
(a) नील के उत्पादर्कों के अत्याचारी आचरण के प्रति काश्तकारों का विरोध
(b) नई खोजों के कारण विश्व बाज़ार में इसका अलाभकर होना
(c) नील की खेती का राष्ट्रीय नेताओं द्वारा विरोध किया जाना
(d) उत्पादकों के ऊपर सरकार का नियंत्रण
Explanation:
नील की खेती 19वीं शताब्दी के अन्त और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में अपने चरम पर थी. इसके उत्पादन का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि वर्ष 1856 में भारत में लगभग 19,000 टन नील का उत्पादन हुआ था. उन दिनों पूरा नील यूरोप भेज दिया जाता था. वहाँ औद्योगिक क्रान्ति के बाद कपड़ा उद्योग का तेजी से विकास हो रहा था. जब जर्मनी की दो कम्पनियाँ बडीश एनिलीन और सोडाफैब्रिक सिंथेटिक नील का व्यावसायिक तौर पर उत्पादन करने लगे तो प्राकृतिक नील की माँग घटती चली गई.
वेलेजली ने कलकत्ता में फ़ोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना किस लिए की थी?
(a) उसे लंदन में स्थित बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स ने ऐसा करने के लिए कहा था
(b) वह भारत में प्राच्य ज्ञान के प्रति अभिरुचि पुनः जाग्रत करना चाहता था
(c) वह विलियम कैरी तथा उसके सहयोगियों को रोज़गार प्रदान करना चाहता था
(d) वह ब्रिटिश नागरिकों को भारत में प्रशासन हेतु प्रशिक्षित करना चाहता था
Explanation:
1798 ई0 में लार्ड वेलेजली भारत के गर्वनर के रूप में नियुक्त हुआ. वह साम्राज्यवादी व महत्वाकांक्षी था तथा अपनी ‘सहायक संधि’ की व्यवस्था अपनाई. उसने 1798 ई0 में निजाम, 1799 ई0 में मैसूर, तंजौर (1799ई0), अवध (1801 ई0), पेशवा (1801 ई0), भोंसला (1803 ई0), सिन्धिया (1804 ई0) तथा अन्य छोटी मोटी रियासतों के साथ संन्धि कर ली थी. इस सन्धि को स्वीकार करने वाले शासकों को अपने यहां अंग्रेज रेजीडेन्ट रखना पड़ता था. उनके विदेशी सम्बन्धों पर भी कम्पनी का नियन्त्रण हो जाता था तथा कम्पनी उन्हें बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा का आश्वासन देती थी. इस प्रकार सहायक सन्धि करने वाला राज्य कम्पनी पर पूर्णतः आश्रित हो जाता था. लार्ड वेलेजली ने 1799 ई0 में मैसूर पर आक्रमण कर दिया. टीपू लड़ता हुआ मारा गया तथा मैसूर का एक बड़ा भाग आग्ल साम्राज्य में मिला लिया गया. लार्ड वेलेजली के समय में द्वितीय आंग्ल मराठा युद्ध लड़ा गया था. जिसमें अंग्रेज विजयी रहे. उसने नागरिक सेवा में भर्ती किए जाने वाले कम्पनी के युवकों को प्रशिक्षित करने हेतु ‘फोर्ट विलियम कॉलेज’ की स्थापना की. किन्तु मॉन्सन की होल्कर के हाथों पराजय तथा लार्ड लेक की भरतपुर में विफलता से रूष्ट होकर वेलेजली को 1805 ई0 में वापस बुलवा लिया गया.
भारत के इतिहास के संदर्भ में, “ऊलगुलान” अथवा महान उपद्रव निम्नलिखित में से किस घटना का विवरण था?
(a) 1857 के विद्रोह का
(b) 1921 के मापिला विद्रोह का
(c) 1859 – 60 के नील विद्रोह का
(d) 1899 – 1900 के बिरसा मुंडा विद्रोह का
Explanation:
आदिवासियों का संघर्ष अट्ठारहवीं शताब्दी से चला आ रहा है. 1766 के पहाड़िया-विद्रोह से लेकर 1857 के ग़दर के बाद भी आदिवासी संघर्षरत रहे. सन 1895 से 1900 तक बीरसा या बिरसा मुंडा का महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ चला. आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-ज़मीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल किया जाता रहा और वे इसके खिलाफ आवाज उठाते रहे. 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई छेड़ी थी. बिरसा ने सूदखोर महाजनों के ख़िलाफ़ भी जंग का ऐलान किया. ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, क़र्ज़ के बदले उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेते थे. यह मात्र विद्रोह नहीं था. यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था.
प्राचीन भारत के विद्वानों/साहित्यकारों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- पाणिनि पुष्यमित्र शुंग से संबंधित है.
- अमरसिंह हर्षवर्धन से संबंधित है.
- कालिदास चन्द्रगुप्त II से संबंधित है.
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Explanation:
पाणिनि नहीं, अपितु पतंजलि पुष्यमित्र शुंग से सम्बंधित था. ‘महाभाष्य’ में लिखा है कि ‘इह पुष्यमित्रम् यजामहे‘ (यहाँ हम पुष्यमित्र के लिए यज्ञ करते हैं) और ‘महाभाष्य’ पतंजलि के द्वारा रचित व्याकरण शास्त्र है.
अमरसिंह चन्द्रगुप्त द्वितीय अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से सम्बंधित है. राजशेखर लिखित कवि मीमांसा के अनुसार अमरसिंह ने उज्जयिनी में काव्यकार परीक्षा उत्तीर्ण की थी. एक प्रकीर्ण पद्य में अमर सिंह को शबर स्वामी की शूद्र पत्नी का पुत्र भी कहा गया है.
पाणिनि (५०० ई पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं. पतंजलि शुंग वंश के शासनकाल में थे. डॉ. भंडारकर ने पतंजलि का समय 158 ई. पू. द बोथलिक ने पतंजलि का समय 200 ईसा पूर्व एवं कीथ ने उनका समय 140 से 150 ईसा पूर्व माना है.
भारत के इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए :
- औरंग – राजकोष का प्रभारी
- बेनियान – ईस्ट इंडिया कंपनी का भारतीय एजेंट
- मिरासिदार – राज्य का नामित राजस्व दाता
उपर्युक्त बुग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं ?
(a) केवल 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Explanation:
शब्द “बेनियान” को ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास में अक्सर पाया जा सकता है और यह उन व्यापारियों को इंगित करता है जिन्होंने यूरोपीय व्यापारियों और उनके भारतीय समकक्षों के बीच मध्यस्थ के रूप में काम किया. गुजरात में, श्रॉफ, वोहरा और पारेख मुख्य बनिया परिवार थे, जैसे कि बृज वोहरा और कल्याणदास पारेख.
ये दरअसल दलाल थे. उनका कार्य अंतर्देशीय व्यापारियों से निर्यात योग्य उत्पादन की आपूर्ति के लिए अनुबंधों को लाना और सुनिश्चित करना था. कलकत्ता में दलालों को बनिया या बेनियान कहा जाता था.
दक्षिण भारत के तमिल जिले में, मुट्ठी भर गाँवों के निवासी जिन्हें मिरासिदार कहा जाता है, अक्सर ब्राह्मण और अन्य उच्च जातियों से संबंधित होते हैं. उन्होंने पूरे गाँव की भूमि पर अपने अधिकार का अधिकार जताया और गाँव के मामलों को नियंत्रित किया. उनके अधीन किसानों का एक समूह था, जो या तो गाँव की जमीन पर खेती करने के लिए स्थायी अधिकार रखते थे या अन्य गाँवों से संबंधित अस्थायी किरायेदार थे. रैयतवारी बंदोबस्त व्यवस्था के तहत, सरकार ने मिरासिदारों को जमीन के एकमात्र मालिक के रूप में मान्यता दी.
भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- स्थाविरवादी महायान बौद्ध धर्म से संबद्ध हैं.
- लोकोत्तरवादी संप्रदाय बौद्ध धर्म के महासंघिक संप्रदाय की एक शाखा थी.
- महासंघिकों द्वारा बुद्ध के देवत्वारोपण ने महायान बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया.
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
Explanation:
UPSC ने एक बार पुनः गलती की. स्थाविरवादी शब्द है ही नहीं. स्थविरवादी है.
स्थविरवाद हीनयान बौद्ध धर्म से संबद्ध है. “स्थविरवाद” अथवा ‘थेरवाद’ शब्द का अर्थ है ‘श्रेष्ठ जनों की बात’. बौद्ध धर्म की इस शाखा में पाली भाषा में लिखे हुए प्राचीन त्रिपिटक धार्मिक ग्रंथों का पालन करने पर बल दिया जाता है. थेरवाद अनुयायियों का कहना है कि इस से वे बौद्ध धर्म को उसके मूल रूप में मानते हैं. इनके लिए तथागत बुद्ध एक महापुरुष अवश्य हैं लेकिन कोई देवता नहीं. वे उन्हें पूजते नहीं और न ही उनके धार्मिक समारोहों में बुद्ध-पूजा होती है. जहाँ महायान बौद्ध परम्पराओं में देवी-देवताओं जैसे बहुत से दिव्य जीवों को माना जाता है वहाँ थेरवाद बौद्ध परम्पराओं में ऐसी किसी हस्ती को नहीं पूजा जाता. थेरवादियों का मानना है कि हर मनुष्य को स्वयं ही निर्वाण का मार्ग ढूंढना होता है. इन समुदायों में युवकों के भिक्षुक बनने को बहुत शुभ माना जाता है और यहाँ यह रिवायत भी है कि युवक कुछ दिनों के लिए भिक्षु बनकर फिर गृहस्थ में लौट जाता है. पहले ज़माने में ‘थेरवाद’ को ‘हीनयान शाखा’ कहा जाता था, लेकिन अब बहुत विद्वान कहते हैं कि यह दोनों अलग हैं. थेरवाद या स्थविरवाद वर्तमान काल में बौद्ध धर्म की दो प्रमुख शाखाओं में से एक है. दूसरी शाखा का नाम महायान है. थेरवाद बौद्ध धर्म भारत से आरम्भ होकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की ओर बहुत से अन्य एशियाई देशों में फैल गया, जैसे कि श्रीलंका, बर्मा, कम्बोडिया, वियतनाम, थाईलैंड और लाओस. यह एक रूढ़िवादी परम्परा है, अर्थात् प्राचीन बौद्ध धर्म जैसा था, उसी मार्ग पर चलने पर बल देता है.
लोकोत्तरवादी वैशाली की संगीति में अलग होने वाले महासंघिक सम्प्रदाय की एक शाखा है. बौद्ध धर्म में लोकोत्तरवाद निकाय अठारह निकायों में से एक है:- कुछ लोग बुद्ध के काय में सास्त्रव धर्मों का बिल्कुल अस्तित्व नहीं मानते और कुछ मानते हैं. ये लोकोत्तरवादी बुद्ध की सन्तति में सास्रव धर्मों का अस्तित्व सर्वथा नहीं मानते. इनके मतानुसार सम्यक सम्बोधि की प्राप्ति के अनन्तर बुद्ध के सभी आश्रय अर्थात चित्त, चैतसिक, रूप आदि परावृत्त होकर निरास्रव और लोकोत्तर हो जाते हैं. यहाँ ‘लोकोत्तर’ शब्द अनास्रव के अर्थ में प्रयुक्त है. जो इस अनास्रवत्व को स्वीकार करते हैं, वे लोकोत्तरवादी हैं. यहाँ ‘लोकोत्तर’ शब्द का अर्थ मानवोत्तर के अर्थ में नहीं हैं इनकी मान्यता के अनुसार क्षणभङ्गवाद की दृष्टि से पहले सभी धर्म सास्रव होते हैं. बोधिप्राप्ति के अनन्तर सास्रव धर्म विरुद्ध हो जाते हैं और अनास्रव धर्म उत्पन्न होते हैं. यह ज्ञात नहीं है कि ये लोग महायानियों की भाँति बुद्ध का अनास्राव ज्ञानधर्मकाय मानते हैं अथवा नहीं.
बौद्ध धर्म तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में भारत के सबसे चरम पश्चिमोत्तर भाग में प्रवेश कर गया था. वहां यह उस दिशा में विकसित हुआ जिसने बुद्ध के व्यक्ति के निरूपण में और निर्वाण-अवधारणा के परिवर्तन में एक निरंतर अस्तित्व के विचार में सबसे स्पष्ट रूप से व्यक्त किया; वहाँ भी सबसे आवश्यक बिंदु उत्पन्न हुए जो दक्षिणी बौद्ध धर्म को सिद्धांत और पूजा के रूपों से अलग करते हैं. इस विकास को एक नए सिद्धांत की स्थापना में एक सकारात्मक निष्कर्ष मिला, जिसने महायान, “द ग्रेट व्हीकल” का नाम लिया, और जो उस क्षेत्र में आठवीं शताब्दी तक फला-फूला, ई.पू.- दफनाने के बाद उस स्कूल की स्थापना के बाद पुराने बौद्ध धर्म की स्थापना हुई. इसके विपरीत, हीनयान, “द स्मॉल व्हीकल” कहा जाता था.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन औद्योगिक क्रान्ति के द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत पर पड़े प्रभाव की सही व्याख्या करता है?
(a) भारतीय दस्तकारी-उद्योग नष्ट हो गए थे.
(b) भारत के वस्त्र-उद्योग में मशीनों का बड़ी संख्या में प्रवेश हुआ था.
(c) देश के अनेक भागों में रेलवे लाइनें बिछाई गई थीं.
(d) ब्रिटिश उत्पादन के आयात पर भारी शुल्क लगाया गया था.
Explanation:
1830 के दशक तक, ब्रिटेन से सस्ते मशीन-निर्मित सामानों ने भारतीय बाजारों में बाढ़ ला दी. चूंकि ये भारतीय वस्त्रों से सस्ते थे, इसलिए भारतीय कपड़ा उद्योगों को नुकसान उठाना पड़ा. इससे भारतीय वस्त्र उद्योग को क्षति हुई और बंगाल के कई बुनकरों को बेरोजगार होना पड़ा. रेलवे को 1853 में भारत में लाया गया था. आयातित भारतीय वस्त्रों पर भारी शुल्क लगाया गया था, न कि ब्रिटिश उत्पादन के आयात पर भारी शुल्क लगाया गया था.
भारत के इतिहास में निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिए :
- राजा भोज के अधीन प्रतिहारों का उदय
- महेन्द्रवर्मन -1 के अधीन पल्लव सत्ता की स्थापना
- परान्तक -1 द्वारा चोल सत्ता की स्थापना
- गोपाल द्वारा पाल राजवंश की संस्थापना
उपर्युक्त घटनाओं का, प्राचीन काल से आरम्भ कर, सही कालानुक्रम क्या है?
- 2-1-4-3
- 3-1-4-2
- 2-4-1-3
- 3-4-1-2
निम्नलिखित में से कौन-सा उपवाक्य, उत्तर-हर्ष-कालीन स्रोतों में प्राय: उल्लिखित “हुंडी” के स्वरूप की परिभाषा बताता है?
- राजा द्वारा अपने अधीनस्थों को दिया गया परामर्श
- प्रतिदिन का लेखा-जोखा अंकित करने वाली बही
- विनिमय पत्र
- सामंत द्वारा अपने अधीनस्थों को दिया गया आदेश
Explanation:
सेठ-साहुकारों के पास प्राचीनकाल में हुंडी पत्र होता था. हुंडी एक लिखित विपत्र है जिस पर लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं और उसमें किसी व्यक्ति को बिना-शर्त आदेश दिया हुआ होता है कि इस विपत्र के धारक को या उसमें अंकित व्यक्ति को उसमें अंकित धनराशि दे दी जाए. आजकल तो चेक होता है. हुंडी में केवल दो पक्षकार होते थे. चेक में अब बैंक भी शामिल हो गया. यह ‘हुंडी’ शब्द कैसे प्रचलन में आया? धर्मिक इतिहासकार श्रीबालमुकुंद चतुर्वेदीजी के अनुसार श्रीकृष्ण के काल में उत्तर भारत में एक प्रभावशाली धनेश्वर हुंडिय की बड़ी प्रसिद्धि थी. इसी के नाम पर लेन-देन के अभिलेख का प्रयोग होने लगा जिसे ‘हुंडी’ कहा जाने लगा. इसका स्वर्ण सिक्का हुन्न कहलाता था. हूण इसी हुंडिय शाखा के लोग थे, जो चीन के हुन्नान में बसे थे. आजकल चीन में इस जाति के लोगों को हयान या हान कहा जाता है.
स्वतन्त्रता संग्राम के समय लिखी गई सखाराम गणेश देउस्कर की पुस्तक “देशेर कथा” के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- इस पुस्तक ने औपनिवेशिक राज्य द्वारा मस्तिष्क की सम्मोहक विजय के विरोध में चेतावनी दी
- इस पुस्तक ने स्वदेशी नुक्कड़ नाटकों तथा लोक गीतों को प्रेरित किया
- देउस्कर द्वारा “देश” शब्द का प्रयोग, बंगाल क्षेत्र के विशिष्ट संदर्भ में किया गया था.
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
- केवल 1 और 2
- केवल 2 और 3
- केवल 1 और 3
- 1, 2 और 3
Explanation:
सखाराम गणेश देउस्कर ने देश में स्वाधीनता की चेतना के जागरण और विकास के लिए ‘देशेर कथा’ की रचना की थी. देउस्कर का एजेंडा पूरे देश के लिए स्वराज था न कि मात्र बंगाल के लिए. यद्यपि उन्होंने कांग्रेस द्वारा संचालित स्वाधीनता आंदोलन का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने उस आंदोलन की रीति-नीति की आलोचना भी की है. उन्होंने देशेर कथा की भूमिका में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘हमारे आंदोलन भिक्षुक के आवेदन मात्र है. हमलोगों को दाता की करुणा पर एकांत रूप से निर्भर रहना पड़ता है. यह बात सत्य होते हुए भी राजनीति की कर्तव्य-बुद्धि को उद्बोधित करने के लिए पुन: पुन: चीत्कार के अलावा हमारे पास दूसरे उपाय कहां है.’’1 वस्ततु: ‘देशेर कथा’ गुलामी की जंजीरों में जकड़ी और शोषण की यातना में जीती-मरती भारतीय जनता के चीत्कार की प्रामाणिक और प्रभावशाली अभिव्यक्ति है.
गाँधी-इरविन समझौते में निम्नलिखित में से क्या सम्मिलित था/थे ?
- राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने के लिए काँग्रेस को आमंत्रित करना
- असहयोग आंदोलन के संबंध में जारी किए गए अध्यादेशों को वापस लेना
- पुलिस की ज़्यादतियों की जाँच करने हेतु गाँधीजी के सुझाव की स्वीकृति
- केवल उन्हीं कैदियों की रिहाई जिन पर हिंसा का अभियोग नहीं था
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
(a) केवल 1
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3
(d) केबल 2, 3 और 4
Explanation:
UPSC की लापरवाही. बहुत बड़ी लापरवाही. बाद में बताऊंगा. विडियो बनाना पड़ेगा.
गाँधी-इरविन समझौते के अनुसार सरकार ने निम्नलिखित वायदे किये –
- सरकार सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर देगी.
- जिन लोगों की संपत्ति आंदोलन के दौरान जब्त की गई थी, उसे वापस कर दिया जाएगा .
- सरकार दमन बंद कर आंदोलन के दौरान जारी किए गए सभी अध्यादेशों और उनसे संबंधित मुकदमों को वापस ले लेगी.
- भारतीयों को नमक बनाने की छूट दी जाएगी.
- जिन लोगों ने आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरियों से त्याग-पत्र दे दिया था, उन्हें सरकार पुनः वापस लेने का विचार करेगी.
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें : गाँधी इरविन समझौता
अस्पृश्य समुदाय के लोगों को लक्षित कर, प्रथम मासिक पत्रिका विटाल-विध्वंसक किसके द्वारा प्रकाशित की गई थी?
(a) गोपाल बाबा वलंगकर
(b) ज्वोतिबा फुले
(c) मोहनदास करमचन्द गाँधी
(d) भीमराव रामजी अम्बेडकर
Explanation:
गोपाल बाबा वलंगकर (1840-1900 ई) एक समाजसुधारक थे जिन्होने अछूत लोगों के उद्धार के लिए अनेक कार्य किए. उन्होने लोगों को परम्परागत सामाजिक-आर्थिक शोषण से छुटकारा दिलाया. वे दलित आन्दोलन के अग्रणी नेता माने जाते हैं. उनका वास्तविक नाम गोपाल कृष्ण था.
1888 में, वालंगकर ने विटाल-विद्वांसक (ब्राह्मणिकल या सेरेमोनियल पॉल्यूशन का विनाशक) शीर्षक से मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, जो अछूत लोगों से सम्बंधित मुद्दों को उठाता था. उन्होंने मराठी भाषा के अखबारों जैसे सुधारक और दीनबंधु के लिए भी लेख लिखे, साथ ही मराठी में दोहे भी रचे जो लोगों को प्रेरित करने के लिए थे.
भारत के इतिहास के संदर्भ में, “कुल्यावाप” तथा “द्रोणवाप” शब्द क्या निर्दिष्ट करते हैं ?
(a) भू-माप
(b) विभिन्न मौद्रिक मूल्यों के सिक्के
(c) नगर की भूमि का वर्गीकरण
(d) धार्मिक अनुष्ठान
Explanation:
गुप्तकाल में भूमि की माप– माप का पैमाना था – 1. निर्वतन, 2. कुल्यावाप, 3. द्रोणवाप, 4. आढ़वाप.
निम्नलिखित में से किस शासक ने अपनी प्रजा को इस अभिलेख के माध्यम से परामर्श दिया?
“कोई भी व्यक्ति जो अपने संप्रदाय को महिमा-मंडित करने की दृष्टि से अपने धार्मिक संप्रदाय की प्रशंसा करता है या अपने संप्रदाय के प्रति अत्यधिक भक्ति के कारण अन्य संप्रदायों की निन्दा करता है, वह अपितु अपने संप्रदाय को गंभीर रूप से हानि पहुँचाता है.”
(a) अशोक
(b) समुद्रगुप्त
(c) हर्षवर्धन
(d) कृष्णदेव राय
Explanation:
यह उद्धरण अशोक के एक शिलालेख (Major Rock Edict No.12) से लिया गया है.
भारत के इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए :
प्रसिद्ध स्थल — वर्तमान राज्य
- भीलसा – मध्य प्रदेश
- द्वारसमुद्र – महाराष्ट्र
- गिरिंगर – गुजरात
- स्थानेश्वर – उत्तर प्रदेश
उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 1 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 2 और 4
विदिशा मध्य प्रदेश राज्य का एक शहर है. भिलसा प्राचीन नगर विदिशा का आधुनिक नाम है. इसके निकट कुछ प्राचीन स्तूपों के अवशेष प्राप्त हुए हैं. जनश्रुतियों के अनुसार इन स्तूपों को सम्राट अशोक द्वारा स्थापित बताया जाता है. मुसलमानों के समय में यह फलता-फूलता नगर था. यहाँ पर एक क़िला भी था, जिससे मालवा प्रदेश में भिलसा सामरिक महत्व का स्थान माना जाता था. भिलसा पर सुल्तान इल्तुतमिश ने 1234 ई. में अपना अधिकार कर लिया था. इसके पश्चात् 1292 ई. में इस पर अलाउद्दीन ख़िलजी का क़ब्ज़ा हो गया. इसके फलस्वरूप अलाउद्दीन के लिए दक्षिण भारत पर चढ़ाई करने का मार्ग प्रशस्त हो गया.
द्वारसमुद्र आधुनिक हैलविड का प्राचीन नाम था. यह होयसल वंश के राजाओं की राजधानी था, जो वर्तमान कर्नाटक क्षेत्र पर शासन करते थे.
गुजरात के शुरुआती इतिहास में चंद्रगुप्त मौर्य की शाही भव्यता को दर्शाया गया है, जिसने पहले के कई राज्यों पर विजय प्राप्त की जो अब गुजरात है. पुष्यगुप्त, एक वैश्य, को मौर्य शासन द्वारा सौराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. उन्होंने गिरिनगर (आधुनिक जूनागढ़) पर शासन किया और सुदर्शन झील पर एक बांध बनाया.
स्थानेश्वर महादेव मन्दिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है. यह मंदिर भगवान शिव का समर्पित है और कुरुक्षेत्र के प्राचीन मंदिरों मे से एक है. मंदिर के सामने एक छोटा कुण्ड स्थित है जिसके बारे में पौराणिक सन्दर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूँदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था. कहते हैं कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी. इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती है.
प्राचीन भारतीय गुप्त राजवंश के समय के संदर्भ में, नगर घंटाशाला, कदूरा तथा चौल किस लिए विख्यात थे?
(a) विदेशी व्यापार करने वाले बंदरगाह
(b) शक्तिशाली राज्यों की राजधानियाँ
(c) उत्कृष्ट प्रस्तर कला तथा स्थापत्य से संबंधित स्थान
(d) बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल
गुप्तकाल में पूर्वी तट पर स्थित बंदरगाह ताम्रलिप्ति, घंटाशाला एवं कदूरा से गुप्त शासक दक्षिण-पूर्व एशिया से व्यापार करते थे. पश्चिमी तट पर स्थित भड़ौच (ब्रोच), कैम्बे, सोपारा, कल्याण आदि बन्दरगाहों से भूमध्य सागर एवं पश्चिम एशिया के साथ व्यापार सम्पन्न होता था. इस समय भारत में चीन से रेशम (चीनांशुक), इथोपिया से हाथी दांत, अरब, ईरान एवं बैक्ट्रिया से घोड़ों आदि का आयात होता था. भारतीय जलयान निर्बाध रूप से अरब सागर, हिन्द महासागर उद्योगों में से था. रेशमी वस्त्र मलमल, कैलिकों, लिनन, ऊनी एवं सूती था. गुप्त काल के अन्तिम चरण में पाटलिपुत्र, मथुरा, कुम्रहार, सोनपुर, सोहगौरा एवं गंगाघाटी के कुछ नगरों का ह्रास हुआ.
भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए :
- परिव्राजक – परित्यागी व भ्रमणकारी
- श्रमण – उच्च पद प्राप्त पुजारी
- उपासक – बौद्ध धर्म का साधारण अनुगामी
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-से सही सुमेलित हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
श्रमण, परिव्राजक के विषय में UPSC 2016 के Prelims परीक्षा में भी आया था. जिसका वर्णन हमने अपने पोस्ट में कर रखा है – Click
श्रमण: श्रमण जैन और बौद्ध परम्परा के संन्यासियों को श्रमण कहा जाता था.
परिव्राजक: परिव्राजक संन्यासियों को कहते थे.
अग्रहारिक: ये वे ब्राह्मण थे जिनको राजा के द्वारा अग्रहार अर्थात् लगान मुक्त ग्राम दान किया जाता था.
मागध: प्राचीन और मध्यकाल में भारत के राजाओं के दरबार में कुछ व्यक्ति होते थे जो राजा की वीरगाथा का गान किया करते थे. जिन्हें मागध कहा जाता था.
उपासक : उपासक बुद्ध, धर्म और संघ की शरण स्वीकार करता है तथा पंचशीलों के परिपालन का व्रत लेता है. बौद्ध धर्म को मानने वाली गृहस्थ स्त्री उपासिका कहलाती है. यह भी उपासक के समान पंचशीलों के परिपालन का व्रत लेती है. उपासक और उपासिकाओं का कर्त्तव्य है कि वे भिक्षु और भिक्षुणियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करें तथा उनसे धर्म सुनें.
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