[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 2
Q1. जीएम फसल क्या होते हैं और इन फसलों का विरोध अक्सर क्यों होता रहता है? विश्लेषण कीजिए. (250 शब्द)
- अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है = Green
- आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow
Syllabus, GS Paper II : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय.
सवाल की माँग
✓ परीक्षक आपसे जीएम फसल की परिभाषा जानना चाह रहा है.
✓ यदि आप Sansar DCA पढ़ते हैं तो आप विरोध का कारण बता सकते हैं.
X बिना परिभाषा दिए उत्तर की शुरुआत मत करें. कई लोग ऐसा करते हैं.
उत्तर की रूपरेखा
- परिभाषा
- विरोध क्यों?
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप ….”
उत्तर :-
संशोधित अथवा परिवर्तित फसल (Genetically Modified Crop), उस फसल को कहते हैं जिसमें आधुनिक जैव-तकनीक के सहारे जीनों का एक नया मिश्रण तैयार हो जाता है. ज्ञातव्य है कि पौधे बहुधा परागण के द्वारा जीन प्राप्त करते हैं. यदि इनमें कृत्रिम ढंग से बाहरी जीन प्रविष्ट करा दिए जाते हैं तो उन पौधों को GM पौधा कहते हैं. यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य है कि वैसे भी प्राकृतिक रूप से जीनों का मिश्रण होता रहता है. यह परिवर्तन कालांतर में पौधों की खेती, चयन और नियंत्रित सम्वर्धन द्वारा होता है. परन्तु GM फसल में यही काम प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से किया जाता है.
GM फसल का विरोध क्यों?
- यह स्पष्ट नहीं है कि GM फसलों (GM crops) का मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा. स्वयं वैज्ञानिक लोग भी इसको लेकर पक्के नहीं हैं. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी फसलों से लाभ से अधिक हानि है. कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि एक बार GM crop तैयार की जायेगी तो फिर उस पर नियंत्रण रखना संभव नहीं हो पायेगा. इसलिए उनका सुझाव है कि कोई भी GM पौधा तैयार किया जाए तो उसमें सावधानी बरतनी चाहिए.
- भारत में GM विरोधियों का यह कहना है कि बहुत सारी प्रमुख फसलें, जैसे – धान, बैंगन, सरसों आदि की उत्पत्ति भारत में ही हुई है और इसलिए यदि इन फसलों के संशोधित जीन वाले संस्करण लाए जाएँगे तो इन फसलों की घरेलू और जंगली किस्मों पर बहुत बड़ा खतरा उपस्थित हो जाएगा.
- वास्तव में आज पूरे विश्व में यह स्पष्ट रूप से माना जा रहा है कि GM crops वहाँ नहीं अपनाए जाएँ जहाँ किसी फसल की उत्पत्ति हुई हो और जहाँ उसकी विविध किस्में पाई जाती हों. विदित हो कि भारत में कई बड़े-बड़े जैव-विविधता वाले स्थल हैं, जैसे – पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट – जहाँ समृद्ध जैव-विविधता है और साथ ही जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है. अतः बुद्धिमानी इस बात में होगी कि हम लोग किसी भी नई तकनीक के भेड़िया-धसान में कूदने से पहले सावधानी बरतें.
- यह भी डर है कि GM फसलों के द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के प्रति कीड़ों में प्रतिरक्षा पैदा हो जाए जिनसे पौधों के अतिरिक्त अन्य जीवों को भी खतरा हो सकता है. यह भी डर है कि इनके कारण हमारे खाद्य पदार्थो में एलर्जी लाने वाले तत्त्व (allergen) और अन्य पोषण विरोधी तत्त्व प्रवेश कर जाएँ.
Q2. क़तर के ओपेक से बाहर जाने का भारत पर क्या आर्थिक प्रभाव पड़ेगा? विश्लेषण कीजिए. (250 शब्द)
Syllabus, GS Paper II : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से सम्बंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते.
सवाल की माँग
✓ भूमिका दें कि मामला क्या है?
✓ क़तर का दूसरे देशों से क्या सम्बन्ध हैं और भारत का इससे क्या लेना-देना है.
✓ प्रभाव बताते हुए अंत में विश्लेषण के लिए कुछ वाक्य लिख दें.
X बिना भूमिका के शुरुआत न करें. पहले लिख दें क़तर क्यों अलग हो रहा है.
X राजनैतिक प्रभाव लिख सकते हैं पर पूर्णतः राजनैतिक प्रभाव की तरफ उत्तर को मत ले जाएँ. ऐसा अक्सर होता है. छात्र लिखते-लिखते अलग मार्ग पकड़ लेते हैं.
उत्तर की रूपरेखा
- भूमिका
- कुछ Data
- राजनैतिक दृष्टिकोण, भारत का क़तर से लेना-देना, भारत के पास विकल्प
- विश्लेषण
क़तर ने घोषणा की है कि वह जनवरी 1, 2019 से OPEC को छोड़ देगा और अब वह गैस के उत्पादन में अपना ध्यान केन्द्रित करेगा. देखा जाए तो अभी तक क़तर भारत के लिए ओपेक के एक सहयोगी देश की भाँति ही रहा है. कतर के फैसले का भारत पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि भारत के प्रमुख तेल निर्यातक देश ईराक, सऊदी अरब और ईरान हैं. तेल के अतिरिक्त भारत के क़तर के साथ अधिक व्यापारिक सम्बन्ध भी स्थापित नहीं हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण यदि भारत को भविष्य में ईरान से आयात घटाना पड़ा तो वह कतर से आयात बढ़ाने का विकल्प चुन सकता है. साथ ही, यदि आने वाले समय में भारत और कतर के सम्बन्ध मित्रवत रहते हैं तो भारत को कतर से सस्ते दाम पर गैस मिल सकती है.
क़तर के निर्यात का करीब 80% हिस्सा एशिया में आता है. अपने कुल गैस उत्पादन का लगभग 15% हिस्सा क़तर भारत को निर्यात करता है. भारत की लगभग 65% गैस आवश्यकताएँ क़तर से पूरी होती हैं अर्थात् अगर OPEC और क़तर के मध्य कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई और भारत को दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ा तो इससे दिक्कतें पैदा हो सकती हैं.
जून 2017 से OPEC का मुखिया सऊदी अरब और साथ ही तीन अरब देशों ने क़तर के साथ व्यापार एवं यातायात सम्बन्ध तोड़ रखे हैं और क़तर पर आरोप लगा रहे हैं कि वह देश आतंकवाद और सऊदी अरब के शत्रु देश ईरान को समर्थन दे रहा है. क़तर इन आरोपों को नकारता है और कहता है कि यह बहिष्कार उसकी राष्ट्रीय सम्प्रभुता का हनन करता है. इस संदर्भ एक पहलू यह भी है कि चूंकि भारत के सम्बन्ध क़तर और सऊदी अरब दोनों से ही अच्छे हैं, ऐसे में तेल तो नहीं, परन्तु किसी भी विवाद की स्थिति प्राकृतिक गैस पर तलवार लटक सकती है. आज इन दोनों देशों के बीच तनाव साफ़ झलक रहा है. ऐसे में भारत के सामने यह चुनौती होगी कि इन दोनों ही देशों या फिर ओपेक समूह और क़तर दोनों ही से अपने सम्बन्ध संतुलित ढंग से रखे जिससे तेल और गैस के आयात में उसे आर्थिक नुक्सान न उठाना पड़े.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि ओपेक से क़तर का अलग होना विश्व के तेल बाजार में निकट भविष्य में कोई अधिक प्रभाव नहीं डालेगा.
“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan