TOPICS – सौर ऊर्जा प्रगति, बैंकों की भूमिका
Q1. सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया क्या है? भारत में सौर ऊर्जा विकास के विषय में अभी तक क्या-क्या प्रगति हुई है? चर्चा करें.
Syllabus, GS Paper III : बुनियादी ढाँचा : ऊर्जा, सड़क आदि…
सवाल की माँग
✓ प्रक्रिया का विवरण देना जटिल है इसलिए प्रश्न का पहला भाग कट-टू-कट है. दूसरा भाग, बिना जानकारी के भी थोड़ा-बहुत तक लिखा जा सकता है.
✓ योजनाओं और नीतियों की चर्चा जरुर करें
X प्रगति का अर्थ ही हुआ ऐतिहासिक विवरण, इसलिए ऐतिहासिक भूमिका नहीं देना बहुत बड़ी भूल होगी.
उत्तर की रूपरेखा
- ऐतिहासिक भूमिका
- सरकार के कदम/पहल/नीतियाँ
- निष्कर्ष
उत्तर :-
हमारे देश में सौर ऊर्जा प्रचुरता से उपलब्ध है. सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में फोटोवोल्टीय प्रणाली द्वारा बदला जाता है. इस प्रणाली में सौर पैनल होते हैं जो कई फोटोवोल्टीय सेलों (जिन्हें सामान्य भाषा में सौर सेल कहते हैं) से मिलकर बनते हैं. कई सौर पैनलों से मिलकर एक सौर ऐरे (solar array) बनता है. सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में कंसंट्रेटेड सोलर पॉवर (CSC) में लैंसों या ट्रैकिंग प्रणाली द्वारा भी बदला जा सकता है. इस प्रकार सूर्य के प्रकाश को एक संकीर्ण किरणपुंज के रूप में लाया जा सकता है.
देश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए यों तो अनेक प्रयास हुए हैं लेकिन मुख्य प्रयास 11 जनवरी, 2010 को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर अभियान के साथ प्रारम्भ हुआ. इस अभियान का लक्ष्य 2022 तक 20,000 मेगावाट ग्रिड सौर पॉवर तथा 2,000 मेगावाट ग्रिड सौर पॉवर का उत्पादन था. राष्ट्रीय सौर अभियान का लक्ष्य भारत को सौर के क्षेत्र में वैश्विक और अग्रणी देश के रूप में स्थापित करना था. सरकार ने राष्ट्रीय सौर अभियान के लक्ष्य को संशोधित कर वर्ष 2022 तक 20,000 मेगावाट की बजाय 1,00,000 मेगावाट यानी 100 टेरावाट का रखा.
सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता (installed capacity) जनवरी 2018 में 20 टेरावाट हो गई थी. देश में सौर ऊर्जा का तेजी से विकास हो रहा है. देश में सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता 31 मई, 2018 तक 21651.48 मेगावाट थी.
आज पवन ऊर्जा से प्राप्त बिजली को नेशनल ग्रिड के साथ जोड़ा जाता है. मई 2018 में नवीककरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने नई विंडसोलर नीति की घोषणा की है. इस नीति के अंतर्गत विंड फार्मों तथा सौर पैनलों को एक ही भूस्थल पर स्थापित किया जाएगा. 31 मार्च, 2019 तक “हर घर तक बिजली पहुँचाने” का सरकार की “सौभाग्य योजना” का लक्ष्य है.
निष्कर्ष
सौर पैनलों द्वारा उत्पन्न बिजली सुदूर दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों, जहाँ परम्परागत ग्रिड द्वारा बिजली पहुँचाना संभव नहीं है, में पहुँचाई जा सकती है. इन्हें सौर पम्प की संज्ञा दी जाती है. खेती की सिंचाई के अलावा इन सौर पम्पों का उपयोग मत्स्य पालन, वानिकी, पेयजल की आपूर्ति तथा नमक बनाने में भी किया जा सकता है.
भौगोलिक परिस्थितियों के कारण कई स्थानों, जैसे मुख्यधारा से कटे दूरस्थ ग्राम, तक विद्युत ग्रिड को पहुँचाना संभव नहीं है. एसे अगम्य एवं दुर्गम क्षेत्रों के लिए मिनि ग्रिड की संकल्पना सामने आई है. 50 वाट और 100 वाट बिजली क्षमता के इन ग्रिडों से सौर ऊर्जा या बायोगैस जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग द्वारा बिजली पैदा की जा सकती है. बायोगैस को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है जिसके लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी देश में उपलब्ध है. सैद्धांतिक रूप से बायोगैस को ईंधन सेल की मदद से सीधे बिजली में बदला जा सकता है. परन्तु, इसमें एकदम स्वच्छ गैस एवं महंगे ईंधन सेल की आवश्यकता पड़ती है. फिलहाल यह प्रौद्योगिकी व्यावहारिक नहीं है और इस पर अभी अनुसंधान होना शेष है.
Q2. ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने में बैंकों की भूमिका की चर्चा करें.
Syllabus, GS Paper III : प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता…
सवाल की माँग
✓ ऐतिहासिक भूमिका
✓ बुनियादी सुविधा से आप क्या समझते हैं? क्या उसमें बैंकों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है? है तो कैसे?
X शहरी जरूरतों, बड़े उद्योगों में बैंकों की भूमिका का वर्णन नहीं करना है.
उत्तर की रूपरेखा
- ऐतिहासिक भूमिका
- सरकार के कदम/पहल/नीतियाँ
- निष्कर्ष
उत्तर :-
1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए किया गया था. इस उद्देश्य के कार्यान्वयन के लिए वर्ष 1975 में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बैंक कृषि ऋण, यथा – किसान क्रेडिट कार्ड, मियादी ऋण, कृषि गोल्ड ऋण, ट्रैक्टर ऋण, सिंचाई के उपकरणों के लिए ऋण आदि मुहैया करा रहे हैं. कृषि से संबद्ध क्षेत्रों, जैसे – पशुपालन, दुग्ध उत्पादन, कुक्कुट पालन एवं कृषि पर आधारित उद्योगों, जैसे – शक्कर, जूट व कपड़ा मिल, खाद्य तेल के कारखाने आदि के लिए बैंक कर्ज मुहैया कराते हैं. सब्जी, फल एवं अनाज को सुरक्षित रखने के लिए बैंक कोल्ड स्टोरेज एवं वेयरहाउस के लिए कर्ज देते हैं. इसके अतिरिक्त बैंक सड़क निर्माण से जुड़े उपकरणों, जैसे – ट्रैक्टर, रोड रोलर आदि एवं कुटीर उद्योगों, स्कूलों, कॉलेजों और अस्तपाल आदि के लिए कर्ज उपलब्ध कराते हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराने में बिजली की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन इसकी उपलब्धता को सुनिश्चित करना आसान नहीं है. लिहाजा, बैंक सौर ऊर्जा के विकास के लिए ऋण उपलब्ध कराते हैं.
खेतों को कृषि के अनुकूल बनाने एवं अधिकतम पैदावार को सुनिश्चित करने के लिए बैंक सिंचाई के उपकरणों, पाइपलाइन, पंपिंग मशीन आदि के लिए कर्ज मुहैया कराते हैं. बैंक हॉर्टिकल्चर एवं नकदी फसलों, जैसे – कपास, जूट, गन्ना आदि के लिए भी कर्ज मुहैया कराते हैं.
बैंक क्रेडिट लिंकेज वर्ष 1992 में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर नाबार्ड ने शुरू किया था. इसके तहत बैंक एसएचजी को मकान बनाने, शिक्षा प्राप्त करने, बच्चों की शादी करने, कर्ज चुकाने आदि के लिए कर्ज देते हैं. बैंक हर वर्ष मुद्रा लोन स्वीकृत करने एवं उन्हें वितरित करने का लक्ष्य हासिल करने में सफल हो रहे हैं.
निष्कर्ष
बुनियादी सुविधाओं तक सभी की पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए बैंकों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है और बिना इनके सहयोग के गाँवों को सशक्त बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का सपना साकार नहीं हो सकता. ऐसे में सरकार को बैंकों की स्थापना के साथ-साथ उनके द्वारा दी जा रही जन-सुविधाओं को लगातार सुधारने के लिए भी व्यापक कदम उठाने होंगे. तभी वित्तीय समावेशन का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सकेगा. दूसरी तरफ, ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ बैंकों की शाखा नहीं है, वहाँ मिनी बैंकों की पहुँच बहुत जरुरी है.
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