महाराष्ट्र में दहानु के पास वधावन में 65,545 करोड़ रु. की राशि से एक बड़ा बंदरगाह बनाने पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है.
वधावन बंदरगाह से सम्बंधित प्रमुख तथ्य
- यह भारत का 13वाँ बड़ा बंदरगाह होगा.
- इस परियोजना में जवाहरलाल नेहरु पत्तन न्यास (Jawaharlal Nehru Port Trust – JNPT) अग्रणी प्रतिभागी होगा अर्थात् इस परियोजना में उसका अंश 50% या अधिक होगा.
- यह बंदरगाह लैंडलॉर्ड मॉडल पर चलेगा.
अभी भारत में कितने बड़े बन्दरगाह हैं?
वर्तमान में भारत में ये 12 बड़े बंदरगाह हैं – दीनदयाल (पुराना नाम कांडला), मुंबई, जेएनपीटी, मोरमुगाँव, न्यू मंगलौर, कोचीन, चेन्नई, कामराजार (पहले एन्नोर), वीओ चिदंबरनार, विशाखापट्टनम, पारादीप और कोलकाता (हल्दिया सहित).
लैंडलॉर्ड मॉडल क्या है?
- किसी लैंडलार्ड बंदरगाह मॉडल में एक सरकारी बंदरगाह प्राधिकरण लैंडलॉर्ड और विनियामक निकाय के रूप में काम करता है जबकि बंदरगाह का कारोबार, मुख्यतः माल ढुलाई का जिम्मा निजी कम्पनियों के पास होता है.
- बंदरगाह का स्वामित्व बंदरगाह प्राधिकरण के पास होता है और अवसंरचना को निजी प्रतिष्ठानों को लीज पर दे दिया जाता है. ये प्रतिष्ठान अपनी ऊपरी संरचना मुहैया करते हैं और उसका संधारण भी करते हैं. माल को संभालने के लिए ये प्रतिष्ठान अपने उपकरण भी लगाते हैं.
- बदले में लैंडलॉर्ड बंदरगाह निजी प्रतिष्ठानों से राजस्व का एक अंश प्राप्त करते हैं.
- लैंडलॉर्ड बंदरगाह प्राधिकरण सभी प्रकार के निजी क्षेत्र की सेवाएँ और संचालन मुहैया कराते हैं जैसे कि कार्गो टर्मिनल और ड्रेजिंग के लिए नीलामी करन आदि.
लैंडलॉर्ड मॉडल की आवश्यकता क्यों?
- वर्तमान में अधिकांशतः बड़े-बड़े पत्तन न्यास भारत में टर्मिनल संचालन भी करते हैं. अर्थात् अभी के बंदरगाह एक संकर मॉडल पर चलते हैं.
- पत्तन प्राधिकरण के टर्मिनल संचालन में संलिप्त होने के कारण हितों के संघर्ष (conflict of interest) देखा जाता है और काम वस्तुनिष्ठ ढंग से नहीं हो पाता है. दूसरी ओर, लैंडलॉर्ड मॉडल में पत्तन प्राधिकरण निष्पक्ष रहता है जोकि पत्तन सेवा प्रदाताओं, विशेषकर टर्मिनल संचालकों के बीच न्यायोचित प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक होता है.