विधान परिषद् के बारे में जानें – State Legislative Council in Hindi

Sansar LochanIndian Constitution

आज हम इस पोस्ट के जरिये विधान परिषद् (State Legislative Council) के बारे में जानेंगे. यह भी जानेंगे कि इस परिषद् का सदस्य बनने के लिए योग्यताएँ (eligibility) क्या है, इस परिषद् के कार्य क्या-क्या हैं और इसके सदस्य के चयन में किन लोगों की भूमिका होती है.

जैसा कि हम सब जानते हैं कि अनुच्छेद 168 के अनुसार प्रत्येक राज्य का एक विधानमंडल होगा, जिसमें राज्यपाल, विधान सभा और विधान परिषद् (विधान परिषद् होने की स्थिति में)  होगा. अनुच्छेद 169 के अनुसार भारतीय संसद किसी भी राज्य के लिए विधान परिषद् की स्थापना या उसकी समाप्ति के लिए नियम बना सकती है, लेकिन इसके लिए सम्बंधित राज्य की विधान सभा द्वारा उक्त प्रस्ताव के लिए दो-तिहाई बहुतमत से पारित होना चाहिए. 

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विधान परिषद् के बारे में जानकारी

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 169 में राज्यों में विधान परिषद् के गठन का उल्लेख है.
  • संविधान के अनुसार इस परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या विधान सभा के कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई भाग से ज्यादा नहीं हो सकती, लेकिन कम-से-कम 40 सदस्य होना अनिवार्य है.
  • यह एक स्थायी सदन है, जिसका कभी भी विघटन नहीं होता है.
  • इसके प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है.
  • प्रत्येक 2 वर्ष पर इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं.
  • इस परिषद् के एक-तिहाई सदस्य स्थानीय संस्थाओं, नगरपालिका, जिला परिषद् आदि के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. एक-तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों के द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्य राज्य के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों एवं कॉलेजों में कम-से-कम तीन वर्ष का अनुभव रखने वाले अध्यापकों के द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्य सम्बंधित राज्य के वैसे निवासी जो भारत के किसी विश्वविद्यालय से स्नातक हों एवं जिन्होंने स्नातक की उपाधि कम-से-कम तीन वर्ष पहले प्राप्त कर ली हो, के द्वारा चुने जाते हैं. शेष 1/6 सदस्य राज्यपाल के द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान, सहकारिता तथा समाज सेवा के क्षेत्र में राज्य के ख्याति प्राप्त व्यक्तियों से मनोनीत किये जाते हैं.
  • विधान परिषद् का अधिवेशन आरम्भ होने के लिए इसके कुल सदस्यों का 1/10 भाग या कम-से-कम 10 सदस्य (जो भी ज्यादा हो) का होना आवश्यक है.
  • इस परिषद् के सदस्यों को सदन में वक्तव्य देने की पूर्ण स्वतंत्रता है एवं उनके द्वारा दिए गये किसी भी वक्तव्य के लिए किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
  • इस परिषद् के सदस्यों को सदन का सत्र प्रारभ होने के 40 दिन पहले एवं सत्र समाप्त होने के 40 दिन के बाद के बीच में दीवानी मुकदमों के लिए बंदी नहीं बनाया जा सकता है.
  • विधान परिषद् का सत्र राज्यपाल द्वारा बुलाया जाता है. किसी एक वर्ष में इसका कम-से-कम दो सत्र होना आवश्यक है एवं एक सत्र के अंतिम दिन तथा दूसरे सत्र के प्रथम दिन के बीच 6 महीने से ज्यादा का समयांतर नहीं होना चाहिए.

विधान परिषद् सदस्य बनने की योग्यताएँ

  1. वह भारत का नागरिक हो एवं कम-से-कम 30 वर्ष के उम्र का हो.
  2. उसका नाम सम्बंधित राज्य की मतदाता सूची में दर्ज हो.
  3. वह भारत या राज्य सरकार के किसी लाभ का पद धारण नहीं किये हुए हो.
  4. वह पागल या दिवालिया न हो.
  5. चुनाव सम्बन्धी किसी अपराध के कारण उसे इस परिषद् के सदस्य चुने जाने के अधिकार से वंचित न कर दिया हो.

विधान परिषद् का कार्य

इस परिषद् के निम्न प्रकार के कार्य हैं –

वित्तीय कार्य

राज्य के वित्त मामलों की वास्तविक शक्तियाँ विधान सभा के पास होती है. कोई भी धन विधेयक पहले विधान सभा में पेश किया जाता है. विधान सभा में पास होने के बाद धन विधेयक को विधान परिषद् में पेश किया जाता है. यह परिषद् इस विधेयक को 14 दिनों तक रोक सकती है. यदि 14 दिनों की अवधि तक यह परिषद् सम्बंधित विधेयक पर कोई कार्रवाई  न करे या कोई संशोधन की सिफारिश करे तो सम्बंधित विधान सभा को यह अधिकार है कि उस संशोधन को माने या न माने एवं विधेयक दोनों सदन से पारित समझा जाता है.

विधायी कार्य

इस परिषद् में साधारण विधेयकों को पेश किया जा सकता है लेकिन विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने से पहले आवश्यक है कि उसे विधान सभा से पारित किया जाए. अगर कोई विधेयक विधान सभा से पारित किया जा चुका हो परन्तु विधान परिषद् में उस पर कोई गतिरोध हो तो यह परिषद् उस विधेयक को नामंजूर कर सकती है, बदल सकती है या तीन महीने तक रोक कर रख सकती है. इसके बाद यदि विधान सभा इस विधेयक को विधान परिषद् के किये गये संशोधन के साथ या उसके बिना अगर पारित कर देती है तो विधेयक दुबारा इस परिषद् के पास भेजा जाता है. इस बार यदि यह परिषद् विधेयक को पुनः मंजूरी न दे या ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक रोक कर रखे तब भी यह विधेयक दोनों सदनों से पारित समझा जाएगा.

संवैधानिक अधिकार

भारत के संविधान के किसी संशोधन में विधान परिषद् विधान सभा के साथ मिलकर भाग लेती है अगर वह संशोधन विधेयक सम्बंधित राज्य पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता हो. राज्य का मन्त्रिमंडल केवल विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है. यह परिषद् मन्त्रिमण्डल को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा नहीं हटा सकती है.

विधान परिषद् के सभापति एवं उप-सभापति

विधान परिषद् के सभापति एवं उप-सभापति का चुनाव सम्बंधित विधान परिषद् के सदस्यों द्वारा किया जाता है. सभापति या उप-सभापति को सदस्यों के द्वारा कम-से-कम 14 दिन पूर्व सूचना देकर प्रस्ताव लाकर बहुमत के द्वारा हटाया जा सकता है. इनका वेतन राज्य के संचित निधि कोष से दिया जाता है.

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विधान सभा और विधान परिषद् में अंतर

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