भारत में कोई विकास बैंक (development bank) नहीं है. अतः बड़ी-बड़ी निर्माण योजनाओं के लिए वित्त पोषण में समस्या देखी जाती है. अतः दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार ने एक ऐसे संगठन को स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है जो भवन निर्माण और आवास-परियोजनाओं के लिए अधिक से अधिक ऋण मुहैया कराएगा.
इस घोषणा से भारत के वित्तीय तंत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना है. यह एक स्वागत योग्य पहल है, यद्यपि इसकी रूपरेखा को लेकर कुछ शंकाएँ भी हैं.
विकास बैंक क्या होता है?
विकास बैंक उस वित्तीय संस्थान को कहा जाता है जो लम्बे समय तक चलने वाले और कम प्रतिलाभ देने वाले पूँजी-निवेश के लिए दीर्घकालिक ऋण मुहैया करते हैं. ये निवेश शहरी ढाँचा निर्माण, खनन, भारी उद्योग और सिंचाई के क्षेत्र में किये जाते हैं.
विकास बैंकों को सावधिक ऋणदाता संस्थान (term-lending institutions) अथवा विकास वित्त संस्थान (development finance institutions) भी कहा जाता है.
विकास बैंकों की विशेषताएँ
- ये बैंक समाज को लाभ पहुँचाने वाले दीर्घकालिक निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिए बहुधा कम और स्थिर दरों पर ब्याज लेते हैं.
- ऐसे ऋण देने के लिए विकास बैंकों को अच्छे-खासे वित्त की आवश्यकता होती है. यह वित्त साधारणतः पूँजी बाजार में बहुत बाद की तिथि वाली सिक्यूरिटी निर्गत करके प्राप्त किया जाता है. इन सिक्यूरिटियों को पेंशन, जीवन-बीमा कोषों एवं डाकघर जमा जैसे दीर्घकालिक बचत संस्थान खरीदते हैं.
- विकास बैंकों को सरकार अथवा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का भी समर्थन मिलता है क्योंकि उनके द्वारा किये गये निवेश का सामाजिक लाभ बहुत अधिक होता है और ऐसे निवेश के साथ अनिश्चितताएँ भी जुड़ी होती हैं. सरकार इनकी सहायता करों में छूट देकर और निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को इनके द्वारा निर्गत सिक्यूरिटी में निवेश करने हेतु प्रशासनिक आदेश देकर करती है.
प्रस्तावित विकास बैंक की रूपरेखा क्या हो?
- भारत में विकास बैंक की स्थापना के पहले यह विचार कर लेना उचित होगा कि इसे वित्त कहाँ से मिलेगा.
- यदि विदेश से निजी पूँजी आमंत्रित की जाती है तो इसका अर्थ होगा कि पूँजी देने वाली कम्पनियों का इस बैंक पर आंशिक स्वामित्व होगा. अतः ध्यानपूर्वक विश्लेषण के पश्चात् ही इस विकल्प पर निर्णय लिया जाना चाहिए.
- राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व को चाहिए कि वे विकास बैंक के सदृश पूर्व में स्थापित बैंकों, यथा – IFCI, ICICI, IDBI आदि के संचालन में सीखे गये सबकों पर विचार करके ही नए संस्थान को एक दृढ़ नींव प्रदान करें.