Voting rights of undertrials and convicts
सर्वोच्च न्यायालय के पास एक याचिका विचाराधीन है जिसमें एक चुनावी कानून पर प्रश्न खड़ा किया गया है जो विचाराधीन और दण्डित अपराधियों को मत का अधिकार नहीं देता है.
इस विषय में कानून क्या कहता है?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुभाग 62(5) के अनुसार जो व्यक्ति पुलिस की संरक्षा में है और जो सजा के बाद कैद भुगत रहे हैं, वे वोट नहीं दे सकते. जो कैदी विचाराधीन हैं उनको भी यह अधिकार नहीं दिया गया है चाहे उनके नाम मतदाता सूची में हों भी तो. मात्र वे ही व्यक्ति जिनको प्रतिषेधात्म्क रूप से बंदी बनाया गया है मत दे सकते हैं और वह भी डाक मत से.
सर्वोच्च न्यायालय का मंतव्य क्या रहा है?
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार मंतव्य दिया था कि यदि कोई व्यक्ति कारागार में है तो वह अपने आचरण के चलते वहाँ है, अतः वह अन्य लोगों की भाँति अधिकार का दावा नहीं कर सकता है.
उन्हें मताधिकार क्यों मिले?
- बंदियों को मत देने से रोकते समय इस पर ध्यान नहीं दिया गया है कि उनके अपराध की गुरुता क्या है और उन्हें कितनी अवधि की सजा मिली है. साथ ही दंड प्राप्त बंदियों, विचाराधीनों और पुलिस संरक्षा के अधीन व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं किया गया है.
- जब तक कानून किसी का दोष सिद्ध नहीं करता है, तब तक वह व्यक्ति निर्दोष माना जाना चाहिए.
- बंदियों के मताधिकार से सम्बंधित वर्तमान व्यवस्था मनमानी है और समानता के अधिकार से सम्बंधित संविधान की धारा 326 का उल्लंघन भी करती है.
अन्य देशों में क्या होता है?
- यूरोप में कई देश ऐसे हैं जहाँ कैदी को वोट देने दिया जाता है – स्विट्ज़रलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, आयरलैंड, बाल्टिक देश और स्पेन.
- रोमानिया, आइसलैंड, नीदरलैंड, स्लोवाकिया, लक्जमबर्ग, साइप्रस और जर्मनी जैसे यूरोप के कुछ ऐसे देश हैं जिन्होंने मध्यम मार्ग अपनाते हुए कैदियों को मताधिकार दिया है परन्तु सजा की मात्रा क्या है जैसी कुछ शर्तें लगा दी हैं.
- बल्गेरिया में जिस बंदी को दस वर्ष से कम की सजा मिली है वह वोट दे सकता है. यह अवधि ऑस्ट्रेलिया में पाँच वर्ष है.
आगे की राह
आज आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता है. कैदियों को मताधिकार देना भी ऐसा ही एक सुधार हो सकता है. यह आवश्यक भी है क्योंकि मताधिकार से वंचित करने का एक बुरा इतिहास रहा है जिसमें अमेरिका और कनाडा जैसे देशों ने मूल निवासियों के प्रति नस्ली भेदभाव और उत्पीड़न किये हैं.
न्याय प्रणाली का यह एक मूल सिद्धांत है कि किसी को भी तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसका दोष सिद्ध नहीं होता है. यदि इस सिद्धांत पर चल कर कैदियों को मताधिकार मिल जाएगा तो उनको भविष्य में समाज से जोड़ने और फिर से स्थापित करने में सहायता मिलेगी.