[Sansar Editorial] वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के विषय में जानें

Sansar LochanSansar Editorial 2018

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जैसा आप जानते हो कि Mr. Salman Khan ब्लैक बक केस (Blackbuck Poaching Case) में दोषी पाए गए हैं. इसलिए एक छात्र की दृष्टि से आपको जानना जरुरी हो गया है कि हमारे कानून में ऐसा क्या है जो ये सब कृत्य करने से एक इंसान को दंड देता है? दरअसल वन्य जीव अपराधों की रोकथाम, अवैध शिकार पर लगाम और वन्यजीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर रोक लगाने के लिए सरकार ने 1972 में वन्य जीव संरक्षण अधिनियम लागू किया. आज हम इसी अधिनियम (Wild Life Protection Act) के विषय में चर्चा करेंगे.

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन्य जीवों के अवैध शिकार, उनकी खाल/माँस के व्यापार को रोकना है. यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण देता है. इस अधिनियम में कुल 6 अनुसूचियाँ हैं जो अलग-अलग तरह से वन्यजीव को सुरक्षा प्रदान करती हैं.

अनुसूची

  • अधिनियम की अनुसूची 1 और अनुसूची 2 के दूसरे भाग वन्य जीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसलिए इसमें कठोरतम सजा का प्रावधान है.
  • अनुसूची 3 और अनुसूची 4 भी वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करती हैं किन्तु इनके लिए निर्धारित सजा बहुत कम है.
  • वहीं अनुसूची 5 में वे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार हो सकता है.
  • जबकि अनुसूची 6 में संरक्षित पौधों की खेती और रोपण पर रोक है.

इस अधिनियम के तहत वन्यजीव को पकड़ने की कोशिश करना, उन्हें नुकसान पहुँचाना पूरी तरह गैर-कानूनी है. इसके अलावा वन्य जीवों के लिए बने अभयारण्य में आग लगाने, हथियारों के साथ प्रवेश करने पर रोक है. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत जंगल के पेड़-पौधों को तोड़ना या काटना मना है. इसके साथ ही वन्यजीवों के शरीर, अंग और चमड़ों का व्यापार करना, सजावट के तौर पर इस्तेमाल करना पूरी तरह प्रतिबंधित है.

Schedule 1, 2, 3 और 4

Schedule 1 में आने वाले जानवरों को highly endangered माना जाता है. बाघ, चिंकारा, ब्लैक बक आदि इसी श्रेणी में आते हैं. इसलिए schedule 1 में आने वाले जीवों को नुकसान पहुँचाने की सजा भी सबसे अधिक होती है.

सजा का प्रावधान (Section 51)

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में वन्यजीवों के शिकार पर कड़ी सजा का प्रावधान है. इस अधिनियम की अनुसूची 1 और अनु. 2 के तहत अवैध शिकार, अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान को क्षति पहुँचाने पर कम से कम 3 साल की सजा है जो 7 साल तक बढ़ाई जा सकती है. इसके साथ ही दस रुपये जुर्माना है. दूसरी बार इस प्रकार का अपराध करने पर 3 से 7 की जेल की सजा निश्चित है और जुर्माना 25 हजार तक लग सकता है.

वन्यजीवों के प्रति अपराध करने के लिए इस्तेमाल किये गए किसी भी उपकरण, वाहन या हथियार को जब्त करने का भी इस कानून में प्रावधान है.

अन्य कानून

इस अधिनियम के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों ने समय-समय पर वन्य जीव की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई नियम और कानून पारित किये हैं. जैसे –

  1. मद्रास वाइल्ड एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1873
  2. ऑल इंडिया एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1879
  3. द वाइल्ड बर्ड एंड एनिमल्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1912
  4. बंगाल राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1932
  5. असम राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1954
  6. इंडियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (IBWL), 1952

सरकार ने वन्यप्राणियों से जुड़े कानून को मजबूत और कड़ा बनाने के उद्देश्य से वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में जनवरी 2003 में संशोधन किया. इसके तहत सजा और जुर्माने को और अधिक कठोर बना दिया गया.

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