मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Modern History GS Paper 1/Part 18

Sansar LochanGS Paper 1 2020-21, Sansar Manthan

Q1. स्त्री शिक्षा के प्रसार का वास्तविक कार्य 19वीं-20वीं शताब्दी के धर्म एवं समाजसुधार आंदोलन के नेताओं ने किस प्रकार किया? कुछ उदाहरणों के साथ वर्णन कीजिए.

क्या करें

✅प्रश्न में “वास्तविक कार्य” लिखा है इसका मतलब आपको अपने उत्तर में यह लिखना चाहिए कि इससे पहले स्त्री शिक्षा की क्या स्थिति चल रही थी. तब जा कर आप “वास्तविक कार्य” क्या किये गये, ये लिखना शुरू कीजिये.

स्त्री शिक्षा की स्थिति

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उत्तर:-

यद्यपि अंग्रेजी शासन के दौरान सरकार ने प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के प्रचार के लिए प्रयास किये, परन्तु प्रारम्भ में स्त्री शिक्षा की अवेहलना की गई. उनकी शिक्षा की व्यवस्था पर न तो सरकार ने ध्यान दिया और न ही इसके लिए धन की व्यवस्था की.

चूँकि सरकार के लिए स्त्री शिक्षा की कोई विशेष उपयोगिता नहीं थी, इसलिए उसने इसके विकार पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया. स्त्री शिक्षा के प्रसार का वास्तविक कार्य 19वीं-20वीं शताब्दी के धर्म एवं समाजसुधार आन्दोलन के नेताओं ने किया. इस बात से भी नकारा नहीं जा सकता कि स्त्री शिक्षा को आगे लाने में भक्ति आंदोलन के बाद, ईसाई मिशनरियों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा.

इस दिशा में सबसे पहला भारतीय प्रयास (ईसाई मिशनरी अलग से स्त्री-शिक्षा का प्रसार कर रहे थे) ब्रह्म समाज ने किया. राममोहन राय ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें शिक्षित करने का प्रयास किया. 1843 ई. में देवेंद्रनाथ ठाकुर ने भी स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयल किया. पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने इस क्षेत्र में सराहनीय प्रयास किए. स्कूल निरीक्षक की हैसियत से उन्होंने करीब 25 बालिका विद्यालयों की स्थापना की जिनमें अनेक उनके खर्च पर ही चलती थी. 1849 ई० में कलकत्ता में बेथुन स्कूल की स्थापना हुई जिसने नारी-शिक्षा के प्रसार में सराहनीय कार्य किए. बंगाल के अतिरिक्त महाराष्ट्र में भी नारी-शिक्षा के प्रसार के लिए कदम उठाए गए. 1848 ई० में “छात्र साहित्यिक और वैज्ञानिक समिति” की स्थापना की गई. इसने बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोलने का प्रयास किया. फलत:, 1851 ई० में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने पुणे में एक बालिका विद्यालय खोला. आगे चलकर प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन जैसी संस्थाओं ने भी स्त्री-शिक्षा के लिए कार्य किए. स्त्री-शिक्षा की बढ़ती प्रगति से सरकार का भी ध्यान इस तरफ आकृष्ट हुआ. डलहौजी ने बालिकाओं को शिक्षित करने के उपाय किए. “वुड डिस्पैच”में इस बात की चर्चा की गई. हंटर कमीशन, सैंडलर आयोग इत्यादि ने स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने का सुझाव दिया. फलत:, बालिकाओं के लिए अनेक स्कूल एवं कॉलेज खुले. इसके बावजूद ब्रिटिश भारत में लड़कों को अपेक्षा लड़कियों में शिक्षितों का अनुपात बहुत कम ही था. वर्तमान समय में इस अनुपात में वृद्धि हुई है.

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