विश्व व्यापार संगठन का इतिहास 15 अप्रैल, 1994 से प्रारम्भ होता है जब मोरक्को के एक शहर “मराकेश” में चार दिवसीय वार्ता प्रारम्भ हुई थी. इस सम्मेलन की अध्यक्षता “प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”, जिसे “गैट/GATT” कहते हैं, के प्रथम महानिदेशक पीटर सदरलैंड ने की थी. वस्तुतः इसी सम्मलेन में “गैट” को नया नाम “विश्व व्यापार संगठन/Word Trade Organization/WTO” दिया गया. यह संगठन 1 जनवरी, 1995 से अस्तित्व में आया. इसके प्रथम स्थायी अध्यक्ष इटली के एक प्रमुख व्यवसायी रेनटो रुगियरो (Renato Ruggiero) बनाए गये.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) वास्तव में विश्व की भावी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित एवं संचालित करने वाला एक दस्तावेज है, जो गैट के पुराने स्वरूप में संशोधन कर व्यापार का विस्तार कर रहा है.
विश्व व्यापार संगठन और GATT
विश्व व्यापार संगठन का मूल “प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”/”GATT” (General Agreement on Tariffs and Trade) में निहित है. GATT की स्थापना 1948 में मूलतः 23 संस्थापक देशों द्वारा की गई थी जिनमें भारत भी एक था.
GATT के तत्त्वावधान में हुई आठवें दौर की वार्ता (1986-1994) के फलस्वरूप 1 जनवरी, 1995 को “विश्व व्यापार संगठन” (World Trade Organisation) जा जन्म हुआ, जिसे “उरग्वे दौर” के नाम से जाना जाता है. इसके पहले GATT केवल वस्तुओं के व्यापार तक सीमित था. उरुग्वे दौर की वार्ता में कई नए समझौतों पर भी बातचीत हुई, जिनमें सेवा व्यापार का आम समझौता और बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार से जुड़े पहलुओं पर समझौते अब मूल संगठन “विश्व व्यापार संगठन” में समाहित हो गये हैं. विश्व व्यापार संगठन (WTO) का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा शहर में है और इसके वर्तमान में भारत समेत 164 सदस्य देश हैं. इससे जुड़ने वाला नवीनतम देश अफगानिस्तान है.
विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य
पीटर सदरलैंड ने अपने एक भाषण में कहा था कि विश्व व्यापार संगठन का उद्देश्य विश्व के देशों को व्यापार एवं तकनीकी क्षेत्रों में एक नई राह पर लाना है. World trade organization का मुख्य उद्देश्य विश्व में मुक्त, अधिक पारदर्शी तथा अधिक अनुमन्य व्यापार व्यवस्था को स्थापित करना है.
विश्व व्यापार संगठन ठोस कानूनी तंत्र पर आधारित है. इसके समझौतों की सदस्य देशों के सांसदों द्वारा पुष्टि की गई है. विश्व व्यापार संगठन पर किसी एक देश का अधिकार नहीं है. महत्त्वपूर्ण फैसले सदस्य देशों के निर्दिष्ट मंत्रियों द्वारा किये जाते हैं. ये मंत्री हर दो साल में कम-से-कम एक बार जरुर मिलते हैं.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के पास विभिन्न देशों के व्यापारिक मतभेदों को सुलझाने की शक्ति प्राप्त है.
विश्व व्यापार संगठन के कार्य
विश्व व्यापार संगठन के महत्त्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है –
- विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय समझौतों के कार्यान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएँ प्रदान करना.
- व्यापार एवं प्रशुल्क से सम्बंधित किसी भी भावी मसले पर सदस्यों के बीच विचार-विमर्श हेतु एक मंच के रूप में कार्य करना.
- विवादों के निपटारे से सम्बंधित नियमों एवं प्रक्रियाओं को प्रशासित करना.
- व्यापार नीति समीक्षा प्रक्रिया से सम्बंधित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करना.
- वैश्विक आर्थिक नीति निर्माण में अधिक सामंजस्य भाव लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एवं विश्व बैंक से सहयोग करना, तथा
- विश्व संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग करना.
WTO के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन
विश्व व्यापार संगठन की निर्णायक संस्था इसके सदस्य देशों के मंत्रियों का सम्मलेन है जिसकी दो वर्ष में बैठक होना अनिवार्य है. यह सम्मलेन बहुपक्षीय व्यापार समझौते के अंतर्गत किसी भी मामले पर निर्णय कर सकता है.
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद से मंत्रिस्तर के 11 सम्मलेन हो चुके हैं. हाल ही में दिसम्बर, 2017 में WTO का 11वाँ मंत्रिस्तरीय सम्मलेन अर्जेंटीना की राजधानी Buenos Aires शहर में आयोजित हुआ. विदित हो कि WTO का पहला सम्मलेन सिंगापुर में दिसम्बर 1996 में हुआ था.
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इन सम्मेलनों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण “दोहा” में सम्पन्न सम्मलेन को माना जाता है. दोहा मंत्रिस्तरीय सम्मलेन (2001) में एक व्यापाक कार्ययोजना स्वीकार की गई थी जिसे “दोहा विकास एजेंडा” कहा गया. इसके जरिये कुछ वार्ताएँ प्रारम्भ की गईं तथा कृषि एवं अन्य सेवाओं पर कुछ निर्णय लिए गये जिन्हें लागू भी किया गया. दोहा विकास एजेंडा पर पूर्ण सहमति न बनने के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका है.
WTO की अगली मंत्रिस्तरीय बैठक 2020 में होने जा रही है. यह बैठक कजाखिस्तान के अस्ताना में आयोजित होगी. मध्य एशिया में इस प्रकार की बैठक पहली बार हो रही है.
WTO की 11वीं बैठक
अर्जेंटीना में आयोजित WTO की मंत्रिस्तरीय 11वीं बैठक में कोई विशेष उपलब्धि नहीं हो सकी. एक ओर जहाँ अमेरिका ने खाद्य सब्सिडी के प्रस्ताव को block कर दिया वहीं दूसरी ओर भारत ने ई-कॉमर्स और निवेश जैसे विषयों पर अपना रुख कड़ा रखा. मत्स्यपालन की सब्सिडी को समाप्त करने का प्रस्ताव भी चीन और भारत की उपेक्षा के कारण पारित नहीं हो सका.
Word Trade Organisation का प्रभाव
विश्व व्यापार संगठन और इसके समझौतों का असर हर आर्थिक गतिविधि पर होना है चाहे वह कृषि हो, व्यापार सेवा हो या उत्पादन. WTO व्यवस्था से उन देशों को ज्यादा लाभ मिलेगा जो चल रही वार्ता में अधिक चतुराई दिखा सकते हैं. जो सरकारें अपने उद्योगों और प्रभावित होने वाले समूहों से लगातार सम्पर्क में हैं उन्हें यह जानने में सहूलियत होगी कि बहु-उद्देश्यीय वार्ताओं में अधिक से अधिक लाभ उठाने के लिए क्या और कैसे बातचीत की जाए. विश्व व्यापार संगठन के अस्तित्व में आने से आर्थिक नीतियों के उदारीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीयकरण की वकालत करने वाली विचारधाराएँ न केवल मजबूत हुईं हैं बल्कि एक मजबूत कानूनी जामा पहन चुकी हैं. राष्ट्रों के लिए इन विचारधाराओं से अलग रास्ते पर चलना असंभव हो चला है. जिन राष्ट्रों ने इसकी महत्ता को समझ लिया है वे तेजी से अंतर्राष्ट्रीय स्पर्द्धा में आगे बढ़े हैं और विजयी रहे हैं. जो राष्ट्र अभी भी इस पर बहस ही कर रहे हैं वे न तो अपने उद्योगों का भला कर रहे हैं और न ही अपने राष्ट्र का.
विश्व समुदाय के लिए विश्व व्यापार संगठन इतना अधिक उपयोगी होते हुए भी अपनी मंजिल पाने में असफल रहा है.असफलता के मूल में कई कारण हो सकते हैं जिनका समाधान तलाशे बिना यह संगठन किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकता.
विश्व व्यापार संगठन का Agenda और उसका औचित्य
विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के समय जो समझौते हुए उन्हें “विश्व व्यापार संगठन का एजेंडा” कहा जाता है. इन समझौतों में विकसित देशों ने यह वादा किया था कि वे कृषि को दी जाने वाली अपनी सब्सिडी में भारी कमी करेंगे और विकासशील देश अपने कृषि उत्पादों को विकसित देशों में बेच पायेंगे. भारत सरकार द्वारा भी यह प्रचारित किया था कि भारत के फल-फूल-सब्जियाँ और अन्यान्य नकदी फसलें विदेशों में बेचकर भारत के किसानों को भारी फायदा होगा. लेकिन पिछले 20 से अधिक वर्षों का अनुभव यह बताता है कि भारत के किसानों को विश्व व्यापार संगठन से कोई अधिक लाभ नहीं हुआ है. विकसित देशों ने अपनी सब्सिडी घटाने के बजाय चार गुनी बढ़ा दी है. यहाँ यह उल्लेखनीय है कि विकासशील देशों में विश्व व्यापार संगठन के समझौतों को उनकी कृषि की बदहाली का मुख्य कारण माना जाता है. यही कारण है कि विश्व व्यापार संगठन के पिछले सम्मेलनों में विकसित देशों को विकासशील देशों की सरकारों का ही नहीं बल्कि जनसंगठनों का भी भारी विरोध झेलना पड़ा है.
GS PAPER– 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतरराष्ट्रीय संबंध….
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