[Sansar Editorial] 2021 की जनगणना में क्या है खास? – सेन्सस से जुड़े मुख्य तथ्य

Sansar LochanSansar Editorial 2020

किसी भी देश के नीति निर्धारण के लिए देश के नागरिकों की सही जनसंख्या का पता होना बहुत जरूरी है. सामाजिक-आर्थिक जानकारी के सही आंकड़ों की बदौलत कमजोर से कमजोर व्यक्ति तक पहुंचा जा सकता है और हर तबके के लिए सही नीति बनाई जा सकती है. यह प्रक्रिया हर 10 साल में की जाती है. वक्त के साथ जनगणना के तरीकों में भी तीव्रता से परिवर्तन हुआ है. पेन-पेपर से आरम्भ हुआ यह सफर आज पूरी तरह डिजिटल हो चला है. भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में जनगणना की इतनी विस्तृत प्रक्रिया अपने-आप में एक अद्भुत संरचना है.

देश में एक बार फिर से जनगणना का कार्य प्रारम्भ होने वाला है. जनगणना 2021 की प्रक्रिया अप्रैल से शुरू होने जा रही है. देश की 16वीं जनसंख्या प्रक्रिया में लाखों कर्मी शामिल होने जा रहे हैं और इसमें ना सिर्फ परिवारों की संख्या गिनी जायेगी बल्कि इसमें मकान की स्थिति से लेकर पानी, टीवी, बिजली, शौचालय और मोबाइल-इंटरनेट जैसी अनेक जानकारियों को संग्रहित किया जाएगा.

मुख्य तथ्य – सेंसस 2021 के विषय में

भारत की जनसंख्या गणना यानी जनगणना प्रक्रिया दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या गणना प्रक्रिया है. जनगणना 2021 की तैयारियाँ शुरू हो गई हैं. जनगणना का यह काम दो चरणों में किया जाएगा

  1. पहले चरण के तहत अप्रैल-सितंबर 2020 तक प्रत्येक घर और उसमें रहने वाले व्यक्तियों की सूची बनाई जाएगी. असम को छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर को अपडेट करने का काम भी इसके साथ किया जाएगा.
  2. दूसरे चरण में 9 फरवरी से 28 फरवरी 2021 तक पूरी जनसंख्या की गणना का काम होगा. देश की पूरी आबादी जनगणना प्रक्रिया के दायरे में आएगी जबकि NPR के अपडेट में असम को छोड़कर देश की बाकी आबादी को शामिल जाएगा. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 दिसंबर को भारत की जनगणना 2021 की प्रक्रिया शुरू करने और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने की मंजूरी दी थी. जनगणना प्रक्रिया पर 8754 करोड़ 23 लाख रु. और NPR अपडेट पर 3941 करोड़ 35 लाख रुपए का खर्च आएगा.

इस वर्ष 1 अप्रैल से 30 सितंबर तक हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग सेन्सस का कार्य पूरा किया जाना है. इसके लिए महापंजीयक और जनगणना आयुक्त अधिसूचना जारी कर दी गई है. जनगणना अधिकारियों को प्रत्येक परिवार से सूचना जमा करने के लिए 31 सवाल पूछने के निर्देश दिए गए हैं. जनगणना एक्ट की धारा 8 की उपधारा 3 के तहत होने जा रही जनगणना के लिए सरकार ने सभी जनगणना कार्यालयों को सवालों की सूची सौंप दी है.

2021 की जनगणना में 31 सवालों में क्या पूछा जाएगा?

जिन 31 सवालों को पूछा जाएगा उनमें घर के मालिक का नाम, हाउस नंबर और मकान की स्थिति समेत कई सवाल शामिल हैं. इनमें बिल्डिंग नंबर, म्युनिसिपल या स्थानीय अथॉरिटी नंबर, सेंसस हाउस नंबर, मकान की छत, दीवार और सीलिंग में मुख्य रूप से इस्तेमाल हुआ मटेरियल शामिल है. मकान का इस्तेमाल किस मकसद से हो रहा है, मकान की स्थिति, मकान का नंबर भी इस सूची का हिस्सा है.

घर में रहने वाले लोगों की संख्या, घर के मुखिया का नाम और मुखिया के लिंग की भी जानकारी देनी होगी. क्या घर के मुखिया अनुसूचित जाति/जनजाति या अन्य समुदाय से ताल्लुक रखते हैं इसे भी बताना होगा. 31 सवालों में मकान का ओनरशिप स्टेटस, मकान में मौजूद कमरे, घर में कितने शादीशुदा जोड़े रहते हैं आदि बातों को भी शामिल किया गया है. पीने के पानी का मुख्य स्त्रोत, घर में पानी के स्त्रोत की उपलब्धता, बिजली का मुख्य स्त्रोत, शौचालय है या नहीं, किस प्रकार के शौचालय हैं, ड्रेनेज सिस्टम और वॉशरूम है या नहीं, इन सबको सवालों की सूची में शामिल किया गया है.

रसोईघर है या नहीं, इसमें एलपीजी पीएनजी कनेक्शन है या नहीं, रसोई के लिए इस्तेमाल होने वाली ईंधन के बारे में जानकारी देनी होगी. रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीविज़न और इंटरनेट की सुविधा है या नहीं, लैपटॉप कंप्यूटर है या नहीं, टेलीफोन, मोबाइल फोन, स्मार्टफ़ोन होने के बारे में भी जानकारी देनी होगी. साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोपेड साथ ही कार, जीप, वैन की भी जानकारी देनी होगी. घर में किस अनाज का मुख्य रूप से उपभोग होता है इसके बारे में भी बताना होगा. साथ ही जनगणना संबंधित संपर्क करने के लिए मोबाइल नंबर भी देना होगा. सरकारी अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि मोबाइल नंबर सिर्फ जनगणना समबन्धित संचार के मकसद से ही पूछा जाएगा और उसका इस्तेमाल किसी और प्रायोजन के लिए नहीं किया जाएगा. 

विदित हो कि 2021 की जनगणना के दौरान बैंक खातों की जानकारी नहीं मांगी जाएगी. इसी बार जनगणना का काम पेन  और पेपर की बजाय मोबाइल फोन एप्लीकेशन के जरिए होगा. राष्ट्रीय महत्व के इस बड़े काम को पूरा करने के लिए 30 लाख  कर्मियों को देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाएगा. जनगणना 2011 के दौरान ऐसी कर्मियों की संख्या 28 लाख थी. 

यह भारत देश के लिए महत्त्वपूर्ण क्यों?

जनगणना के आँकड़ों का सरकार के अलावा समाजशास्त्रियों, विचारकों, इतिहासकारों और राजनीतिशास्त्रियों के लिए बेहद महत्व होता है. जनगणना के जरिये जो देश की जनसंख्या से जुड़ी जानकारी मिली है वे नीतियाँ बनाने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण साबित हुई हैं. भारत की जनसंख्या में सर्वाधिक वृद्धि 1961 से लेकर 1971 के बीच 24.80% हुई थी जबकि पिछले सेंसस यानी 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 1,210,854,977  है जो करीब 122 करोड़ है. भारत की जनसंख्या में 2001 से 2011 के दौरान 18.18 करोड़ की वृद्धि हुई है. यह बढ़ोतरी विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश ब्राजील 19.5 करोड़ से थोड़ी ही कम है. जनगणना के अनुसार, सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जबकि सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम है.

2021 की जनगणना 2011 के सेन्सस से कैसे अलग?

जनगणना किसी भी देश के भविष्य के विकास की योजना बनाने का आधार होती है. 2021 की जनगणना देश की 16वीं और आजाद भारत की 8वीं जनगणना होगी. 1872 में शुरू हुई जनगणना प्रक्रिया में समय के साथ कई बदलाव हुए और नई पद्धति का प्रयोग हुआ. आज जनगणना प्रक्रिया पेन और कागज से निकलकर डिजिटल स्तर तक पहुंच गई है. 2021 की जनगणना कागज रहित होगी और आबादी के आंकड़ों का संग्रहण और वर्गीकरण की पूरी प्रक्रिया डिजिटल होगी. इस प्रक्रिया में मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया जाएगा. इस ऐप के माध्यम से 16 भाषाओं में जानकारी दी जा सकती है जिसका सत्यापन किया जाएगा.

जनगणना 2021 की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कई नई पहल की गई हैं. जनगणना 2021 में पहली बार आंकड़े के संकलन के लिए मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया जाएगा. साथ ही जनगणना के काम में लगाए गए अधिकारियों और पदाधिकारियों को अलग-अलग भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए जनगणना निगरानी और प्रबंधन पोर्टल की व्यवस्था की जाएगी ताकि जनसंख्या गणना की गुणवत्ता और प्रक्रिया जल्द सुनिश्चित हो सके. वहीं आम लोगों को अपनी ओर से जनसांख्यिकी आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन सुविधा दी जाएगी. इसके अलावा कोर्ट डायरेक्टरी की व्यवस्था भी की जाएगी ताकि विस्तार से दी गई जानकारियों को कूटबद्ध कर आँकड़ों के प्रसंस्करण के काम में समय की बचत की जा सके. मंत्रालयों के अनुरोध पर जनसंख्या से जुड़ी जानकारियां उन्हें सही, मशीन में पढ़े जाने लायक और कार्रवाई-योग्य प्रारूप में उपलब्ध कराई जाएगी. जनगणना के काम के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मियों को गुणवत्ता पर प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसके लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर प्रशिक्षण तैयार करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर की प्रशिक्षण संस्थाओं की सेवाएं ली जाएंगी. इसके अलावा के जनगणना के काम में लगे लोगों को दी जाने वाली राशि सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिए सीधे उनके बैंक खातों में भेजने की व्यवस्था की गई है.

दरअसल, जनगणना केवल एक सांख्यिकी प्रक्रिया भर नहीं है. इसके नतीजे आम जनता को इस तरह उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि उन्हें इन्हें समझने में आसानी हो. इसके साथ ही जनसंख्या से जुड़े सभी आंकड़े मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों और अनुसंधान संगठनों समेत सभी हितधारकों और उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराए जाएंगे. जनसंख्या से जुड़े आंकड़ों को गांवों और वार्ड जैसी प्रशासनिक स्तर की आखिरी इकाइयों के साथ भी साझा किया जाएगा. जनसंख्या से जुड़े ब्लॉक स्तर के आंकड़े परिसीमन आयोग को भी मुहैया कराए जाएंगे ताकि लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन में इनका इस्तेमाल हो सके. जनजातियों के निर्धारण के लिए जनसंख्या के आंकड़े एक सशक्त माध्यम बनते हैं. इस बड़े महत्व के काम का एक सबसे बड़ा नतीजा दूरदराज के क्षेत्रों से लेकर पूरे देश में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार का सृजन करना भी है. इससे करीब 2 करोड़ 40 लाख मानवदिवस के रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे. आंकड़ों के संकलन के लिए डिजिटल प्रक्रिया और समन्वय की नीति अपनाए जाने से जिलों और राज्य स्तर पर तकनीकी दक्षता वाले पांच मानव संसाधनों के क्षमता विकास में भी मदद मिलेगी. भविष्य में ऐसे लोगों के लिए रोजगार पाने की संभावनाएं भी बढेंगी. जनगणना शहरों, गांवों और वार्ड के स्तर पर लोगों की सही संख्या बताने के साथ ही छोटे से छोटे आंकड़े उपलब्ध कराने का सबसे बड़ा स्त्रोत है.

इतिहास

जनगणना जनसंख्या की विशेषता से जुड़ी सांख्यिकी जानकारी का एकमात्र माध्यम है. भारत में पहली बार जनगणना 1872 में लॉर्ड मेयो के कार्यकाल में हुई थी. युद्ध, महामारियों, प्राकृतिक आपदा और राजनीतिक उथल-पुथल जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी जनगणना कराने की परंपरा को जारी रखा गया जो अपने आप में एक उपलब्धि है. दुनिया में बहुत कम देश ऐसे हैं जो ऐसी शानदार परंपरा पर गौरवान्वित अनुभव कर सकते हैं. भारत में जनगणना के लिए 1881 में पहली बार एक अलग विभाग बनाया गया और सेंसस कमिश्नर को जिम्मेदारी सौंपी गई. भारत में सेंसस कमिश्नर का पद 1941 तक रहा. इसके बाद 1949 में इसका नाम बदलकर रजिस्टार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर कर दिया गया. मई 1949 में भारत सरकार ने इसे गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया. तब से यह विभाग हर 10 साल पर जनगणना कराता है. 1872 में हुई जनगणना को शामिल करते हुए अब तक भारत में 15 जनगणनाएँ हो चुकी हैं.

2011 की जनगणना

सामाजिक, आर्थिक और दूसरे सामयिक परिप्रेक्ष्य के साथ जनगणना में नए आयाम जोड़े जाते हैं. आजादी के बाद 2011 में सातवीं जनगणना हुई जिसमें पहली बार जाति के आधार पर गिनती हुई. आजादी के पहले से गिने तो 2011 की जनगणना 15वीं थी.

15वीं जनगणना का काम 1 मई, 2010 को शुरू हुआ. इसे दो चरणों में पूरा किया गया. इसे 27 लाख से ज्यादा अधिकारियों ने 7000 नगरों, कस्बों और छह लाख से ज्यादा गांवों में घर-घर जाकर पूरा किया. इसके तहत लिंग, धर्म, शिक्षा स्तर, व्यवसाय आदि के आंकड़ों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया. 2011 की जनगणना में तीन तरह की प्रश्नावली थी. इसके फॉर्म में मकान सूचीकरण, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और परिवार इकाइयाँ जैसे तीन हिस्से थे. 30 अप्रैल 2013 को 15वीं जनगणना के अंतिम आंकड़े जारी किए गए थे.

जनगणना में जाति से जुड़े सवालों का इतिहास

1872 के बाद से हर जनगणना में धर्म और भाषा के सवाल पूछे गए. लेकिन आजादी मिलने के बाद से जाति का सवाल पूछना बंद हो गया था. इसकी वजह यह बताई गई कि आजादी के बाद बनी सरकार की कल्पना यह थी कि भारत एक आधुनिक लोकतंत्र बन चुका है और जाति जैसी आदिम पहचान के आधार पर लोगों की गिनती करना उचित नहीं है. सरकार का यह भी मानना था कि जाति की गिनती नहीं होने से जाति और जातिवाद खत्म हो जाएगा. 1941 में जाति गिनी गई लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के कारण आंकड़े संकलित नहीं हो पाए. आजादी के बाद 1951 से लेकर 2011 तक की जनगणना में जाति नहीं गिनी गई.

देश के हर आदमी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन सिर्फ जनगणना में होता है. वैसे तो इन जानकारियों के लिए सर्वेक्षण भी होते हैं और इसके लिए भारत सरकार का नेशनल सैंपल सर्वेक्षण संगठन भी है. लेकिन सर्वेक्षण में आबादी के एक छोटे हिस्से से जानकारियां ली जाती हैं और हर आदमी तक पहुंचने का काम तो जनगणना में ही होता है. हालाँकि 2011 से पहले भी जनगणना में जाति के सवाल शामिल थे. हर जनगणना में एक सवाल यह जरूर पूछा गया कि क्या आप अनुसूचित जाति से हैं?

संविधान में प्रावधान है कि अनुसूचित जाति को आबादी के अनुपात में राजनीतिक आरक्षण दिया जाएगा. इसलिए उनकी आबादी को जानना एक संवैधानिक जरूरत है. ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग को कितना आरक्षण देना है, इस सवाल पर भी जनसंख्या के जरिए आंकड़े जुटाने की सिफारिश हुई. मंडल कमीशन ने मजबूरी में 1931 की जनगणना से काम चलाया और सिफारिश की कि भारत में जाति जनगणना कराई जाए. मंडल कमीशन की रिपोर्ट 1991 में लागू हुई थी. लेकिन कमीशन की मांग 2001 में हुई जनगणना में नहीं मानी गई और जाति नहीं गिनी गई.

आगे की राह

भारत की जनसंख्या अगर सबसे बड़ी चुनौती है तो सबसे बड़ी ताकत भी. ऐसी में अगर इस जनसंख्या की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति से जुड़ी सटीक जानकारी मिल जाए तो यह नीति बनाने में बेहद मददगार साबित होंगे.

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