- ऐसे समय में जब लद्दाख में LAC पर तनाव है, सेना की आवाजाही और रसद आपूर्ति में टनल के बन जाने से सहयोग मिलेगा.
- वहीं अब पकिस्तान से लगी कारगिल सीमा पर भी सेना की पहुँच सरल हो जायेगी. दरअसल, लाहौल-स्पीति के लिये इस टनल के बड़े मायने हैं.
- सर्दी में रोहतांग दर्रे के जम जाने से कोई पर्यटक लाहौल-स्पीति पहुँचने में असमर्थ होता था. टनल से गुजरते वक्त ऐसा लगेगा कि सीधी-सपाट सड़क पर चले जा रहे हैं, लेकिन टनल के एक हिस्से और दूसरे में 60 मीटर ऊंचाई का फर्क है. साउथ पोर्टल समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि नॉर्थ पोर्टल 3060 मीटर ऊंचा है.
- वहीं इस क्षेत्र के प्रसिद्ध मटर व आलू देश के बाकी क्षेत्रों तक नहीं पहुंच पाते थे.
- यहाँ का जीवन इतना मुश्किल हो जाता था कि बीमार लोगों को उपचार के लिये हेलीकॉप्टर सेवा की सहायता लेनी पड़ती थी.
- इस टनल के निर्माण के बाद हिमाचल प्रदेश, जो एक छोटा राज्य है, उसे केवल देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पहचान मिली है. इतनी ऊंचाई पर इतनी लंबाई वाली कोई दूसरी टनल नहीं है.
- यह सुरंग हिमाचल प्रदेश के लाहुल एवं स्पीति ज़िले में मनाली के पास सोलंग घाटी (Solang Valley) को सिस्सू (Sissu) से जोड़ती है. सोलंग घाटी (Solang Valley) का नाम सोलंग (निकटवर्ती गाँव) और नाला (जलधारा) शब्दों के संयोजन से मिलकर बना है. यह हिमाचल प्रदेश में कुल्लू घाटी के शीर्ष पर अवस्थित एक साइड वैली है. वहीं, सिस्सू (Sissu) जिसे खालिंग (Khagling) भी कहा जाता है, भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में लाहुल घाटी में एक छोटा सा शहर है. यह मनाली से करीब 90 किमी. दूर है और चंद्रा नदी (Chandra River) के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है. सोलंग घाटी एवं सिस्सू के मध्य की दूरी में लगभग 46 किलोमीटर की कमी होने से परिवहन लागत में करोड़ों रुपए की बचत होगी.
- इस टनल की बनावट से लेकर इसमें से वाहनों के गुजरने और इसकी निगरानी को लेकर बहुत ही आधुनिक एवं उच्च तकनीक से युक्त प्रबंध किए गए हैं. इस टनल की निर्माण लागत करीब 3200 करोड़ रुपये है. इस परियोजना को 6 वर्ष से कम समय में पूरा किया जाना था लेकिन इसे पूरा होने में 10 वर्ष का समय लगा.
निःसंदेह अटल टनल के निर्माण में छह की बजाय दस वर्ष लगे, परन्तु अब लोगों की आशाएँ उफान पर हैं. आशा है अब क्षेत्र से लोगों का पलायन रुकेगा, वहीं हिमाचल के जो कर्मचारी सर्दियों में यहां नौकरी करने से कतराते थे, उनके लिये जीवन अब सरल एवं सहज हो पायेगा. कनेक्टिविटी से पर्यटन संस्कृति व विंटर स्पोर्ट्स को विस्तार मिलेगा.
हालांकि, जनवरी-फरवरी में क्षेत्र में अधिक बर्फ पड़ने के कारण यातायात सुगम नहीं होता, परन्तु अबी दस महीने आवागमन सामान्य रह पायेगा. समुद्र तल से दस हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर बनने वाली यह 9.02 किमी लम्बी सुरंग दुनिया की सबसे लंबी सुरंग बताई जा रही है. 26 मई, 2000 में साउथ पोर्टल पर बनने वाली सड़क की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखी थी, जबकि विधिवत कार्य 2010 में प्रारम्भ हुआ. बहरहाल, बेहद खतरनाक रोहतांग दर्रा अब लाहौल-स्पीति के विकास को नहीं रोक पायेगा. साथ ही हिमाचल के चंबा जनपद के किलाड़ व पांगी घाटी के विकास को नयी दिशा मिल जायेगी. पीर पंजाल की पहाड़ियों में निर्मित इस सुरंग से मनाली से लेह की दूरी अब 46 किमी कम होगी और वहीं केलांग जाने में पांच-छह घंटे की भी बचत होगी. उन्नत तकनीक और आधुनिक सुविधाओं से लैस ऐसी दूसरी टनल उत्तर भारत में विद्यमान नहीं है. इसमें सुरक्षा उपायों का विशेष ध्यान रखा गया है.
आशा है कि सामरिक दृष्टि से मील का पत्थर कही जाने वाली अटल टनल लाहौल-स्पीति के लोगों के जीवन में परिवर्तन लाएगी और उनके हर सपने को भी साकार करेगी. वहीं LAC पर उपजे तनाव में जी रहे लेह-लद्दाखवासियों के लिये टनल का उद्घाटन एक उज्जवल भविष्य का द्योतक है. हालांकि, लेह के लोगों के लिये बरालाचा, लाचुंगला, तांगलंगला व सरचु दर्रे अभी भी चुनौती हैं, परन्तु गर्मियों के मौसम में लेह के लोगों के समय व यातायात खर्च की बचत होगी. इसके बावजूद प्रत्येक मौसम में लेह को शेष देश से जोड़ने के लिये अनुकूल सुरंग बनाने की आवश्यकता है.