आत्म निर्भर भारत के तहत आर्थिक पैकेज – वित्त मंत्री सीतारमण के वक्तव्य का सार
आत्म निर्भर भारत के तहत आर्थिक पैकेज का ध्यान इस बात पर है कि कैसे कर्मचारियों और कम्पनियों के हाथ में अधिक से अधिक पैसे आयें जिससे वे अधिक खर्चा कर सकें और अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर से पटरी पर आ सके.
नॉन सैलरीड इनकम
सबसे बड़ा फैसला यह है कि अगले वर्ष मार्च तक अवैतिनिक आय (नॉन सैलरीड इनकम) पर टैक्स डिडक्शन ऐट सोर्स (TDS) कटौती को 25% कम कर दिया गया है. इसे सरल भाषा में यदि आप समझना चाहते हैं तो ऐसे समझिये कि जो भी सेवाप्रदाता हैं या जो पेशेवर हैं, अगर वह हजार रूपये का काम करते हैं तो उसमें पहले ₹100 टैक्स देना पड़ता था लेकिन अब उनको सिर्फ ₹75 ही टैक्स देना पड़ेगा यानी ₹25 उनके बच जाएंगे. यानी टीडीएस उनको जो देना है उसमें 25 परसेंट का डिस्काउंट मिलेगा. इस निर्णय से लगभग 50,000 करोड़ रुपए सीधे लोगों के हाथ में आएंगे.
इनकम टैक्स रिटर्न
इनकम टैक्स रिटर्न भी अब 30 नवंबर तक आप भर सकते हैं. उसके लिए भी आपको छूट मिल गई है. आपकी सैलरी में एंप्लाइज प्रोविडेंट फंड के हिस्से को अब कम कर दिया है. पहले आपकी सैलरी से 12% हिस्सा EPF में कट जाया करता था, अब सिर्फ 10% हिस्सा ही आपका कटेगा अर्थात् अब आप को इन हैण्ड सैलरी थोड़ी अधिक हो जायेगी. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि अगर प्रोविडेंट फण्ड में ₹12 आपके हिस्से से और ₹12 आपकी कंपनी के हिस्से से जाते थे तो अब ₹10-10 ही जाएंगे यानी ₹24 की जगह ₹20 ही EPF में जाएंगे अर्थात् इससे आपको भी फायदा होगा और आपकी कंपनी को भी फायदा होगा.
सैलरी वाले कर्मचारी
इसके अतिरिक्त ₹15 हजार से कम सैलरी वाले कर्मचारियों के प्रोविडेंट फण्ड की रकम सरकार अगले 3 महीने तक और भरेगी. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत पहले यह ऐलान किया गया था कि मार्च-अप्रैल और मई के PF का हिस्सा सरकार देगी. अब जून-जुलाई और अगस्त महीने में भी कर्मचारी और कंपनी दोनों के हिस्से की PF की रकम सरकार ही भरेगी. इससे साढ़े तीन लाख कंपनियों और 72 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा.
माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME)
आर्थिक पैकेज का ध्येय हमारे देश के छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों को प्रोत्साहित करना है जिससे करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है. अंग्रेजी में इस उद्योग को माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) कहते हैं. इस देश की अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक MSME पर निर्भर होती है. भारत में कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार इन्हीं छोटे-छोटे उद्योगों से मिलता है जहां करोड़ों लोग काम करते हैं. भारत में करीब 11 करोड़ लोग इन्हीं छोटी-छोटी कंपनियों में काम करते हैं. भारत की जीडीपी का 30% हिस्सा इसी सेक्टर से आता है और इन्हीं कंपनियों का देश के कुल निर्यात में 40% हिस्सा है. इसलिए इन कंपनियों के बारे में सोचना आवश्यक था.
कोरोनावायरस का सबसे अधिक प्रकोप इन्हीं छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ा है क्योंकि पिछले 50 दिन से देश में लॉकडाउन की वजह से उनका कोई भी कारोबार नहीं चल रहा, कोई भी काम नहीं हो रहा. इसलिए अगर अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर से पटरी पर लानी है तो इन छोटी-छोटी कंपनियों को ही सबसे पहले दृढ़ता प्रदान करनी होगी और यही कारण है कि आर्थिक पैकेज में सबसे पहले इन्हीं छोटे उद्योगों को राहत दी गई है.
इस सेक्टर के लिए ₹3 लाख करोड़ का लोन दिए जाने का ऐलान हुआ है. इससे करीब 45 लाख कंपनियों को प्रत्यक्ष लाभ होगा. कंपनियों को कारोबार के लिए सरलता से बिना गारंटी के लोन मिल सकेगा. ये कम्पनियाँ ब्याज का भुगतान 1 साल बाद भी कर सकती हैं अर्थात् 1 साल तक उन्हें ब्याज से छूट मिलेगी.
MSME की परिभाषा बदली गई
MSME की परिभाषा में भी बदलाव कर दिया गया है. अब यह देखा जाएगा कि कंपनियों ने कितना निवेश किया और उनका कितना कारोबार हो रहा है.
- पहले 25 लाख तक का निवेश करने वाली कंपनियों को माइक्रो (सूक्ष्म) माना जाता था, लेकिन अब 1 करोड़ रुपए का निवेश और 5 करोड़ रुपए तक सालाना कारोबार करने वाली कंपनी को माइक्रो माना जाएगा.
- और इसी तरह से स्मॉल उद्योग वाली कम्पनियाँ (लघु) वे ही मानी जायेंगी जिनका ₹10 करोड़ का निवेश होगा और जिनका ₹50 करोड़ तक का सालाना कारोबार होगा.
- मीडियम उद्योग वाली कम्पनियाँ वही मानी जायेंगी जिनका ₹20 करोड़ तक का निवेश होगा और जो 100 करोड़ रूपए तक का सालाना कारोबार करती हों.
ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि हमारी घरेलू कंपनियां विदेशी कंपनियों के समक्ष प्रतिस्पर्धा में इससे पहले टिक नहीं पाती थीं. इनके लिए एक सीमा थी कि वे कितनी रकम का निवेश कर सकती हैं. मान लीजिए अगर कोई छोटी कंपनी अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए 25 लाख रुपए की कोई मशीन लगाना चाहती थी, तो वह ऐसा नहीं कर पाती थी क्योंकि उसे डर होता था कि उसे सरकार से मिलने वाली छूटें खत्म हो जाएंगी. अब निवेश बढ़ाने से ऐसा होगा कि जो कंपनियां स्वयं को बढ़ाना चाहती हैं और अधिक से अधिक निवेश करना चाहती हैं अर्थात् अपने कारोबार को बढ़ाना चाहती हैं या अपने उत्पाद को बेहतर करना चाहती हैं तो उनके लिए सरकार ने नई संभावनाएं खोल दी हैं. अब वह निवेश के माध्यम से अपने उत्पाद और अपनी क्षमता को बेहतर करके बाजार में विदेशी कंपनियों से टक्कर लेने की स्थिति में आ जाएंगी.
ग्लोबल टेंडर
लोकल को ग्लोबल करने के लिए ही 200 करोड़ रुपए से कम के टेंडर के नियम को भी खत्म कर दिया गया है यानी अब सरकार की तरफ से 200 करोड़ रुपए से कम का कोई ग्लोबल टेंडर नहीं होगा. अब भारत सरकार की ओर से 200 करोड़ रुपए से कम का कोई आर्डर आएगा तो वह आर्डर घरेलू कंपनियों को ही मिलेगा. विश्व की शेष कंपनियों को इससे बाहर रखा जाएगा. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर कोई भारतीय कम्पनी कोई मोबाइल बना रही है और प्रत्येक मोबाइल का दाम ₹10 हजार है तो अभी तक ऐसा होता था कि चीन जैसे देशों की कंपनियां वही उत्पाद ₹8 हजार में बेचकर सरकारी टेंडर प्राप्त कर लिया करती थी और भारतीय कंपनियों के लिए बाजार में टिके रहना कठिन हो जाता था क्योंकि चीन में जो बनने वाला सामान सस्ता होता और अंततः भारत सरकार का यह टेंडर किसी विदेशी कंपनी को चला जाता था.
₹50 हजार करोड़ का अतिरिक्त फण्ड
इसके साथ ही सरकार ने ₹50 हजार करोड़ का अतिरिक्त फण्ड बनाया है. यह रकम उन कम्पनियों को दी जायेगी जो किसी वजह से या कर्ज के बोझ के चलते दिवालिया होने की स्थिति में पहुंच गई हैं. आर्थिक पैकेज में इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी घरेलू कंपनी का पेमेंट 45 दिन के अंदर क्लियर हो जाएगा यानी अगर किसी कम्पनी ने किसी छोटी कम्पनी से कच्चा माल लिया है तो उसे 45 दिन के अंदर फाइनल पेमेंट कर देना होगा.
आर्थिक पैकेज के अंतर्गत ऐसे बड़े फैसले इसलिए किये गए हैं ताकि हमारे घरेलू उद्योग की क्षमता को बढ़ाया जा सके, उन्हें एक ही दायरे में न रखा जाए, उद्योग बढ़ाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाए. यह प्रधानमंत्री के उस आर्थिक मन्त्र के अनुरूप है जिसमें उन्होंने कल लोकल के लिए वोकल होने और लोकल को ही ग्लोबल बनाने की बात कही थी.
यह भी पढ़ें >