[Sansar Editorial] COVID-19 के चलते कृषि क्षेत्र कितना प्रभावित हुआ?

Sansar LochanSansar Editorial 2020

कृषि क्षेत्र गत कई वर्षों से संकट को झेल रहा है और कृषि से होने वाली कमाई में अनवरत गिरावट देखने को मिली है. परिणामस्वरूप, कृषि पर निर्भर परिवारों की बचत में कमी आई है. इसलिए कृषि क्षेत्र में निवेश भी घट रहा है और कृषि क्षेत्र की विकास दर भी लगातार पतन के राह पर है. यदि आँकड़ों की बात की जाए तो 2009 से 2013 के दौरान कृषि क्षेत्र की वार्षिक विकास दर 4.9% थी, जो अब फिसलकर 2.7% पर आ गई है. अब कोरोना महामारी की मार झेल रही हमारी लचर अर्थव्यवस्था के समक्ष कृषि क्षेत्र को पुनः उबारना एक चुनौती बन चुका है. इसलिए भारत को सही समय पर इसको लेकर कार्रवाई करनी होगी, वरना स्थिति बदतर हो सकती है.

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Picture Source : The Hindu

विदित हो कि कृषि निर्यात और औद्योगिक विकास दर में होने होने वाली गिरावट से बेरोजगारी में भी उछाल आया है. परिणामस्वरूप, खाद्यान्न और कृषि से संबंधित दूसरे उत्पादों के मूल्यों में गिरावट आई है. इससे कृषि आय का स्तर नकारात्मक हो चुका है. निर्यात होने वाले बासमती चावल, कपास, भैंस के मांस और अन्य उत्पादों की मांग में अच्छी-खासी कमी आई है और आपूर्ति में भी परेशानियाँ हैं.

इसके अलावा कृषि श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी दर में भी गिरावट आई है. हम जानते हैं कि छोटे और सीमांत कृषकों की भी लगभग 34% आमदनी कृषि मजदूरी पर ही निर्भर है. ऐसे में, कोविड-19 के कारण से लागू तालाबंदी ने कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. इससे कृषि बाजार पूर्ण रूप से ठप हो चुका है.

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, अनौपचारिक क्षेत्र की करीब 40 करोड़ जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करती है. कोरोना के कारण, इस विशाल जनसंख्या के समक्ष रोजगार का संकट आ खड़ा हो गया है और ये लोग गरीबी के कुचक्र में फंसते जा रहे हैं. इसलिए, कृषि क्षेत्र पर विशाल स्तर पर आने वाले दिनों में भी प्रतिकूल असर पड़ने की बहुत संभावना है. इसके कई कारण हो सकते हैं –

  1. पहला यह है कि लंबे तालाबंदी से रबी की फसल की कटाई में भी परेशानियाँ आ रही हैं, क्योंकि इस समय श्रमिकों का संकट है. हरियाणा और पंजाब की सरकारों ने इस संदर्भ में अच्छा कदम उठाया. उन्होंने सही समय पर कदम उठाकर रबी पैदावार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद कर ली. वैसी ही तत्परता यदि दूसरे राज्य दिखाते तो शायद परिस्थिति कुछ और होती. भगवान् न करे ऐसा हो यदि रबी पैदावार की खरीद में और भी विलम्ब किया गया तो इस बात की पूर्ण आशंका है कि बारिश या तूफान से फसल खेतों में पड़े रहने के कारण बर्बाद हो सकते हैं.
  2. दूसरा, कर्नाटक एवं अन्य राज्यों से ऐसे समाचार सुनने को आ रहे हैं कि मजदूरों की कमी और ढुलाई-व्यवस्‍था न हो पाने से फसल की कटाई नहीं हो पा रही है और किसान शीघ्र खराब होने वाली फसलों को बाजार तक पहुंचाने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं. मंडियां भी अनेक स्थानों से बंद कर दी गई हैं. शीघ्र खराब होने वाली फसलों के लिए कोल्ड स्टोरेज की उपलब्धता भी बहुत कम है.
  3. तीसरी विशाल समस्या यह है कि सीमांत किसान और भूमिहीन मजदूरों हेतु खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन चुकी है. वे अनाज एवं आवश्यक खाद्य वस्तुओं की दैनिक रूप से खरीदारी करते हैं, परन्तु तालाबंदी के कारण आपूर्ति प्रभावित हुई है. ऐसे में, उनके समक्ष खाने-पीने का संकट आ खड़ा हुआ है. इस वक्त भारतीय खाद्य निगम के पास लगभग 5.6 करोड़ टन अनाज का भंडार है. सरकार इस भंडार को गरीबों के लिए वितरण में प्रयोग कर सकती है, जिसका वित्त मंत्री ने पूर्व ही ऐलान कर दिया है. परन्तु यह कदम तभी सार्थक होगा जब इसे सही ढंग से लागू किया जाएगा. तालाबंदी के चलते मत्स्य और पोल्ट्री उत्पादों पर भी भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. इससे छोटे किसानों के जीवन पर संकट के बादल छा गये हैं.
  4. चौथी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तालाबंदी से हजारों प्रवासी मजदूर अचानक फंस गए हैं. अचानक घोषित हुए लॉकडाउन के चलते आर्थिक गतिविधियां थम गई हैं. राज्यों और शहरों की सीमाएँ सील कर दी गई हैं. ऐसे में जो जहां है वहीं फंसा रह गया है. आपको जानना चाहिए कि प्रवासी मजदूर कई सीमांत किसानों की आवश्यकताएं पूरी करते हैं और कृषि क्षेत्र की आपूर्ति शृंखला (Supply chain) को बनाए रखते हैं. उनके लॉकडाउन में फंस जाने से यह शृंखला पूरी तरह से टूट चुकी है.
  5. पाँचवी चिंता की बात यह है कि रबी फसलों की कटाई में विलम्ब से खरीफ की बुवाई में विलम्ब होगा. इससे कई क्षेत्रों में उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है. इसके अतिरिक्त बीज और उर्वरक की अल्पता की भी समस्या भी खड़ी होगी. खरीफ के मौसम में लगभग 25 करोड़ क्विंटल बीज की आवश्यकता पड़ती है जिसका मार्च से मई महीने के दौरान प्रयोग किया जाता है. परन्तु इस वर्ष ताल्बंदी के चलते यह प्रक्रिया ठप हो गई है. भले ही केंद्र और राज्य सरकारों ने कृषि गतिविधियों को तालाबंदी से भिन्न रखने के निर्देश दिए हैं, परन्तु लोगों को दैनिक रूप से स्थानीय पुलिस और प्रशासन से उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ है.

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है कि कोविड-19 के संकट को देखते हुए लॉकडाउन का होना बहुत आवश्यक है. यह सब जानते हैं कि लॉकडाउन से वायरस का संक्रमण कम से कम हो सकेगा, परन्तु यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि इसको जारी रखने में कहीं आपूर्ति शृंखला प्रभावित न हो जाए, क्योंकि यदि ऐसा हुआ तो इससे बड़ा संकट हमारे समक्ष आ खड़ा हो सकता है.

इसके अलावा भारतीय खाद्य निगम, नेफेड और राज्य सरकारों को आपस में सही तालमेल बिठाना होगा. सभी राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद की व्यवस्था अवश्य करनी चाहिए. अन्य फसलों के लिए जो नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई पारदर्शी रूप से किसानों को त्वरित रूप से करनी चाहिए जिससे किसान को इस संकट से उबरने में मदद मिल सके और खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने में वे सक्षम हो सकें. साथ ही साथ बैंकों और वित्तीय संस्थानों को परामर्श देना चाहिए कि वे खरीफ फसलों हेतु किसानों को कम अवधि के ब्याज-मुक्त कर्ज उपलब्ध कराएं, जिससे वे फसल के लिए इनपुट खरीद सकें. यदि संभव हो तो पीएम किसान योजना के अंतर्गत किसानों को मिलने वाली राशि को दोगुनी कर देनी चाहिए. इसमें बंटाईदार और भूमिहीन मजदूरों को भी सम्मिलित करना चाहिए.

कोविड-19 एक भयंकर बीमारी है. इसके प्रकोप से हमारी जनसंख्या का एक विशाल भाग पीड़ित है और कई लोगों की तो जानें भी चली गई हैं. भारत में आर्थिक तथा सामाजिक प्रगति भी थम-सी गई है. आज हमें कोविड-19 से मिलकर लड़ने की जरूरत है और यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि किसी की भी जान भूख से न जाए. आगामी दिवसों में कोविड-19 से लड़ने में किसान और मजदूरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने वाली है, इसलिए उन्हें प्रोत्साहन और सम्मान दिए जाने की आवश्यकता है.

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