[Sansar Editorial] पराली जलाना कितना सही और कितना गलत?

Sansar LochanSansar Editorial 2020

निःसंदेह दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण की समस्या तब अधिक जटिल हो जाती है जब धान की फसल के पश्चात् किसान खेतों में पराली जलाने लगते हैं. गत मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय ने खेतों में पराली जलाने के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई करते हुए केंद्र व निकटवर्ती राज्यों हरियाणा, पंजाब, यूपी तथा दिल्ली सरकारों को जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने चेतावनी दी कि यदि समय रहते इस दिशा में कोई कार्रवाई न हुई तो परिस्थिति बदतर हो जायेगी. इस मामले पर अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होनी है. ऐसे समय में जब देश में कोविड-19 की महामारी का प्रकोप है, प्रदूषण समस्या को और भी विपरीत बना सकती है. सच्चाई यह है कि अनेक प्रयासों व दावों के बाद भी खेतों में पराली जलाने की समस्या काबू में नहीं आ रही है.

पंजाब में किसानों को आपत्ति है कि राज्य सरकार उन्हें अवशेष को न जलाने के एवज में मुआवजा देने में असफल रही है. वर्तमान परिस्थिति में वे पराली के निस्तारण के लिये खरीदी जाने वाली मशीनरी हेतु ऋण भुगतान करने में सक्षम नहीं हैं. वहीं मुख्यमंत्री का दावा है कि उन्होंने पराली प्रबंधन की लागत कम करने के लिये केंद्र सरकार के साथ मिलकर कार्य किया है. दरअसल, खेती में मानव श्रम की हिस्सेदारी कम होने और कृषि मशीनरी के अधिक उपयोग से पराली की समस्या विकट हुई है. पंजाब में पराली जलाने से रोकने की निगरानी के लिए राज्य में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति हुई है. इन नोडल अधिकारियों का उत्तरदायित्व है कि वे पराली के निस्तारण के लिए उपकरण उपलब्ध कराने, पराली की उपज का अनुमान लगाने और मुआवजे को अंतिम रूप देने का दायित्व निभायेंगे. केंद्र द्वारा हाल में लाये गये किसान सुधार बिलों के विरुद्ध पंजाब में जारी आंदोलन के मध्य इस समस्या से निपटना भी एक बड़ी चुनौती है. विशेषज्ञों द्वारा सुझाव दिया जाता रहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ उन्हीं किसानों को मिले जो पराली का निस्तारण ठीक ढंग से करते हैं.

वैश्विक संदर्भ में

  • विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, विश्व में होने वाली हर आठ मौतों में से एक वायु प्रदूषण के कारण होती है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष लगभग 65 लाख लोग काल के गाल में समा जाते हैं. 
  • प्रतिवर्ष होने वाली कुल मौतों में से 11.5% वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले रोगों के कारण होती हैं. रिपोर्ट में 2025 तथा 2050 की संभावनाओं की चर्चा करते हुए कहा गया है कि यदि स्थिति इसी प्रकार बनी रही तो दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत में हालात बेहद चिंताजनक हो सकते हैं. 
  • यूनीसेफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व भर में 30 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं, जिसकी वज़ह से उन्हें गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं. 
  • इसमें यह भी बताया गया है कि विश्व में प्रत्येक सात में से एक बच्चा ऐसी हवा में साँस लेता है, जो अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं होती. दक्षिण एशिया में प्रत्येक 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में साँस लेने को मज़बूर हैं.
  • लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 460 लाख डॉलर प्रदूषण जनित रोगों पर खर्च होते हैं, जो विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग 6.2% है.

पराली जलाना क्या होता है?

नवम्बर महीने में धान की फसल कट जाने पर उसी खेत में गेहूँ बोने की जल्दबाजी होती है जिस कारण किसान फसल कटाई से बची हुई पराली को जलाकर गेहूँ की तैयारी झट-पट करने लगते हैं. ऐसा करने से न केवल वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक गैसों का ही, अपितु पार्टिकुलेट पदार्थ का भी उत्सर्जन होता है.

किसान पराली जलाना क्यों चाहते हैं?

  • किसान पराली जलने से होने वाले स्वास्थ्य के खतरे को समझते हैं, परन्तु उनके पास खेत को दुबारा झट-पट खेती के योग्य बनाने का और कोई दूसरा उपाय नहीं होता.
  • फसल कटाई से बची हुई पराली के निस्तारण के लिए नई तकनीक उपलब्ध है, परन्तु उनके लिए ये तकनीक सुलभ नहीं होती.
  • विशेषज्ञों का कहना है कि नई तकनीक के खर्चीले होने के कारण किसान पराली को जला देने में ही अपनी भलाई समझते हैं.

निस्संदेह खेतों में पराली जलाने से रोकने के लिये किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है. किसानों को दंडित किये जाने के बजाय उनकी समस्या के निस्तारण में राज्य तंत्र को सहयोग करना चाहिए. विडंबना ही है कि पराली के कारगर विकल्प के लिये केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ से समस्या विकट होने पर ही पहल की जाती है, जिससे समस्या का कारगर समाधान नहीं निकलता. वजह यह भी है कि साल के शेष महीनों में समस्या को गंभीरता से नहीं लिया जाता. हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने एक सस्ता और सरल उपाय तलाशा है. उसने एक ऐसा घोल तैयार किया है, जिसका पराली पर छिड़काव करने से उसका डंठल गल जाता है और वह खाद में परिवर्तित हो जाता है. वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं कि पराली जलाने की प्रक्रिया में कॉर्बनडाइऑक्साइड व घातक प्रदूषण के कण अन्य गैसों के साथ हवा में घुल जाते हैं जो सेहत के लिये घातक साबित होते हैं. बीते साल एक एजेंसी ने पराली जलाने से होने वाले धुएं में पंजाब व हरियाणा की हिस्सेदारी 46% बतायी थी, जिसमें अन्य कारक मिलकर समस्या को और जटिल बना देते हैं. निश्चय ही जटिल होती समस्या हवा की गति, धूल व वातावरण की नमी मिलकर और जटिल हो जाती है. दरअसल, ऐसे समय में निर्माण और अन्य औद्योगिक गतिविधियों पर निगरानी की आवश्यकता होती है जो प्रदूषण बढ़ाने में भूमिका निभाते हैं. ऐसे समय में जब दीवाली का त्यौहार भी निकट है, समस्या के विभिन्न कोणों को लेकर गंभीरता दिखाने की आवश्यकता है. साथ ही किसानों को जागरूक करने की भी जरूरत है कि भले ही किसान को पराली जलाना सरल लगता हो, परन्तु वास्तव में यह खेत की उर्वरता को क्षति ही पहुँचती है. परन्तु दिक्कत यह भी है कि छोटे व मँझोले किसान पराली निस्तारण के लिये महंगी मशीन खरीदने में समर्थ नहीं हैं. इस दिशा में सब्सिडी बढ़ाने की भी आवश्यकता का अनुभव होता है.

ऐसा नहीं है कि पराली जलाने से क्षति ही क्षति होती है. इसके कुछ लाभ भी हैंजैसे –

  1. इससे खेत झट-पट तैयार हो जाता है.
  2. यह सबसे सस्ता उपाय है.
  3. यह खरपतवार को समाप्त कर देता है. इन खरपतवारों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको कीटनाशक दवाओं से मारना कठिन होता है.
  4. यह कीड़े-मकौडों को मार देता है.
  5. इससे नाइट्रोजन टाई-अप में कमी आती है.

पराली जलाने से बचने के वैकल्पिक उपाय

  • धान के डंठलों से बिजली बनाई जा सकती है. ऐसा करने से किसान पराली को नहीं जलाएंगे और उन्हें रोजगार के अवसर भी मिलेंगे.
  • पराली को मिट्टी में ही दबा देने से मिट्टी की नमी में सुधार आएगा और इसके भीतर मृदा सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ेगी जो अंततः पौधों के बेहतर विकास में काम आएगी.
  • पराली को कम्पोस्ट करके जैव-खाद में बदला जा सकता है.
  • पराली से खमीर प्रोटीन भी निकल सकता है जिसका उद्योगों में उपयोग हो सकता है.
  • हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है.

जैसा कि हम सभी को विदित है कि गत कुछ सालों से फसल अवशेष जलाने की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है. दिल्ली के पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद खेतों को साफ करने के लिये उनमें आग लगा दी जाती है, जिसके कारण इससे उत्पन्न होने वाला धुआँ दिल्ली की हवा को प्रदूषित कर देता है.  पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश के अधिकतर स्थानों पर पराली जलाए जाने के मामले समक्ष आते रहते हैं. अधिक मशीनीकरण, पशुधन में कमी, कम्पोस्ट बनाने हेतु दीर्घावधि आवश्यकता तथा अवशेषों का कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं होने के कारण खेतों में फसलों के अवशेष जलाए जा रहे हैं. यह न मात्र ग्लोबल वार्मिंग के लिये बल्कि वायु की गुणवत्ता, मिट्टी की सेहत और मानव स्वास्थ्य के लिये भी बहुत ही दुष्प्रभावी है.

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